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लिखता हूँ क्योंकि लिखने से दर्द को तसल्ली मिलती है. अगर न लिखूं तो शायद मर जाऊं… दिन में दो-तीन घंटा तुम्हारी बहुत याद आती है…बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि ऐसा लगने लगता है कि यदि अब और चुप रहा तो पागल हो जाऊंगा… जितने नकारात्मक ख्याल हैं सब इसी दौरान उठते हैं…अजीब-अजीब से ख्याल आते हैं.. इन अजीब ख्यालों में एक ख्याल मर जाने का भी होता है…
मैं मरना तो नहीं चाहता हूँ, लेकिन जीने की कोई वजह नहीं मिल रही है…आई मीन जीने में मजा नहीं आ रहा है.. सुना था कि एक लड़की को भुलाने में दूसरी लड़की के आने तक का वक़्त लगता है…लेकिन ऐसा कुछ होता नज़र नहीं आ रहा है.. और वैसे भी मैं तुम्हे भुलाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा हूँ…भुलाना ज़रूरी नहीं समझता हूँ. मैंने अब तक जितनों से प्यार किया है वे सब मेरे अंदर अभी भी जिंदा है… मैंने कभी भी किसी को भुलाकर या फिर किसी को भुलाने के लिए किसी से प्यार नहीं किया है… मेरे देखे प्यार ऐसी चीज है जो मरने से पहले समाप्त नहीं होता है…
चौबीस घंटे के लिए मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूँ… एक बार जी भरकर तुम्हे जीना चाहता हूँ…तुम्हे छूना चाहता हूँ…चूमना चाहता हूँ… तुम्हे प्यार करना चाहता हूँ… तुम्हारी गोद में सर रखकर आखिरी हिचकी लेना चाहता हूँ…
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