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‘तुम कौन हो…??’

Wise Man's Folly!
Wise Man's Folly!
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जहाँ-जहाँ दर्द है
वहां-वहां मैं हूँ,
शरीर का दर्द मुझे
इस बात का
एहसास दिलाता है
कि मैं शरीर हूँ,
अन्यथा
कभी इसकी कोई
अनुभूति नहीं होती है,
मन जब व्यथित होता है
तो मालूम होता है
कि मैं मन हूँ…
आत्मा के दर्द को
कभी जाना नहीं..
और शयद इसीलिए
अभी तक
आत्मा-ज्ञान से
वंचित हूँ.
कहीं ऐसा तो नहीं
कि जिसको
शरीर, मन और दिल के
दर्द का पता चलता है
वही मैं हूँ…?
लेकिन फिर
तुम कौन हो…??
मैंने तुमको भी जाना है,
महसूस किया है
और जिया है…
तुम्हे कैसे जानता हूँ…??
और यह जो जानना है
वह किसका जानना है…??
कौन जानता है तुम्हें
और कौन हूँ मैं…??

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