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ज़िन्दगी किसी शैतान की ख़्वाब-सी लगती है. रात बेहोशी में गुज़रती है और दिन बेख्याली में. रात एक सपना देखा था कि कोई शैतान मेरे पीछे पड़ा है, और मैं उससे जान बचाने के लिए भाग तो रहा हूँ, लेकिन कहीं पहुँच नहीं रहा हूँ. आज सुबह जब आंख खुली तो सोचने लगा दिन में भी तो यही हाल है. कब से तो दौड़ रहा हूँ, लेकिन पहुंचा कहां हूँ? एक मुद्दत से वहीँ का वहीँ खड़ा हूँ, पीछे जा नहीं सकता, आगे सिवाय अंधकार के कुछ दिखता ही नहीं है. कब से एक ही जगह पर गोल-गोल घूम रहा हूँ.
सांसे तेज़ हो जाती है जब ख़ुद को देखता हूँ, रोष पैदा होता है, खींज उठती है. क्या हालत हो गई है मेरी, एक जीवन-विहीन लाश की तरह घिसट रहा हूँ, वक़्त की रेत पर. अगर यही तड़पन, यही पीर, और यही उदासी ज़िन्दगी है, तो मैं जीने से इनकार करता हूँ. ये ज़िन्दगी जिसकी अता है, उससे मैं गुज़ारिश करता हूँ कि वो आए और अपनी बख्शीश वापिस ले जाए. तुम्हारी इस मेहरबानी से मैं तंग आ चुका हूँ, अपनी अमानत आकार वापिस ले जाओ, मेरी अब रंच मात्र भी उत्सुकता नहीं है इसको सहेज कर रखने की. और अगर तुम इसे नहीं ले जाओगे, अगर तुम दी हुई चीज़ वापीस नहीं लेते हो, तो मुझे आज्ञा तो कि मैं इसे किसी दिन झटक कर फेंक दूं.
मैं ठहरना चाहता हूँ, ये गोल-गोल घूम-घूम कर मुझे चक्कर आ रहा है. इस चक्र को रोक देना चाहता हूँ, विश्राम चाहिए मुझे, सुकून चाहिए, निश्चिंत हो जाना चाहता हूँ. ये मेरा सहजन्मा सूनापन अब भर जाना चाहिए. मुझे ऐसी ज़िन्दगी जीना है, जैसी भोर गहरी नींद से उठने के बाद एक दो पल के लिए महसूस होता है.
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