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जिंदगी क्या है, किसे कहते हैं हम ज़िन्दगी? शायद, सुबह बिस्तर पर से उठने के बाद और शाम फिर बिस्तर जाने से पहले का जो वक़्त होता है उसे हम ज़िन्दगी कहते हैं| यदि हाँ, तो मेरा जो ये वक़्त है सुबह बिस्तर से उठाने और शाम बिस्तर पर जाने से पहले का, वो उदासियों में गुज़र रहा है, एक गहरी उदासी में| अंदर ऐसा गहन अंधकार है, जहाँ हज़ार-हज़ार सूरज एक साथ खो सकते हैं सदा के लिए|
मैं या तो उदास होता हूँ या फिर उदास नहीं होता हूँ| ये दो ही रंग जाने है मैंने अब तक, एक ब्लैक है और दूसरा व्हाईट, बांकी ख़ुशी, आनंद, मस्ती और आल्हाद सब सिर्फ थोथे शब्द हैं मेरे लिए, जिसे या तो लोगों से सुना है या किताबों में पढ़ा है| कभीकभार यदि खुश हुआ भी हूँ तो सिर्फ पहले से और ज्यादा उदास हो जाने के लिए…| मेरी जिंदगी में आई हर ख़ुशी मुझे और गहरे अवसाद में ले जाने की तैयारी मात्र होती है| जैसे बिजली कड़कने के बाद रात और काली हो जाती है, वैसे ही ख़ुशी के बाद मेरी उदासी और स्याह हो जाती है|
एक अपने सिवा सब कुछ है अपने पास, मैं ख़ुद ही ख़ुद का नहीं हूँ| जॉब सही चल रहा रहा, स्वास्थ्य अच्छा है, घर में सब ठीक हैं, कोई बड़ी मुसीबत सामने नहीं है, रात नींद भी आ जाती है, हाँ कुछ उलूल-जूलूल सपने आते रहते हैं, लेकिन इतना चलता है, कुछ भी ऐसा नहीं चल रहा जिससे मुझे परेशान होना चाहिए, फिर भी उदास रहता हूँ| कई बार कारण ढूंढने की कोशिश करता हूँ, लेकिन कहीं कुछ मिलता नहीं है| अब तो ऐसा लगता है कि मैं उदासी ही हूँ, ये उदासी किसी वजह से नहीं है, ये मेरे ही होने का एक ढंग है, ‘दिस इज़ व्हाट आई ऍम-द सैड्नस!
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