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‘द अल्केमिस्ट ‘ के लेखक पाउलो कोएलो लेखक की परिभाषा देते हुए कहते हैं, “हमेशा चश्मा पहने रहता हो, बालों में कंघी नहीं करता हो, और उसकी बातें ऐसी हो जिसको उसके समसामयिक कभी न समझ सके” |
आज कल मेरे मोबाइल के वॉलपेपर में जिस लड़की की तस्वीर लगी है वो उस लड़की की है जिससे दो साल पहले मैं प्यार करता था (ये बात अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि आज कल मैं जिस लड़की के प्रेम में हूँ वो कोई और है, मतलब की प्रेम किसी और से करता हूँ, तस्वीर किसी और की लगा रखी है), उचित हो कि मैं ये कहूँ कि दो साल पहले हम दोनों एक दुसरे से प्यार करते थे, क्योंकि मैं आज भी प्यार उस लड़की से उतना ही प्यार करता हूँ जितना दो साल पहले करता था | इधर मेरे अनुभव में आया है कि प्रेम-पात्र (प्रेमिका) के चले जाने से प्रेम करने की क्षमता नष्ट नहीं हो जाती है | एक लड़की के जाने के बाद मैं बड़ी सहजता से दूसरी लड़की के प्रेम में पड़ जाता हूँ, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पुरानी लड़की के प्रति जो प्रेम मेरे अंदर था वो समाप्त हो जाता है… बिल्कुल नहीं… !!! हाँ…ये ज़रूर होता है कि पुरानी वाली की कम याद आती है लेकिन जब भी याद आती है बहुत याद आती है…. | मैं बद्र साहेब से राजी हूँ जब वो ये कहते हैं कि ‘एक लड़की को भूलाने में दूसरी लड़की के आने तक का वक़्त लगता है’ | मज़ा ये है कि हर बार मैं ये महसूस करता हूँ कि मेरा ये नया वाला प्यार पुराने वाले प्यार से ज्यादा गहरा और समग्र है |
दो साल पहले मैं अपने रिलेशनशिप से परेशान हो कर दिल्ली से मुंबई आ गया था | सोच कर तो ये आया था कि कुछ दिन मुंबई में रह कर दिल्ली वापिस चला जाऊंगा, लेकिन मुंबई आने के बाद मैं फिर से दिल्ली जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया | मैं दिल्ली से इतना डर गया था कि कोई अगर दिल्ली की बात छेड़ देता था तो मैं वहां से उठ कर चला गया था… दिल्ली का नाम सुनकर ही मैं अंदर से कांप उठता था | पहली बार मुझे सार्त्र की ”दि अदर इज़ हेल” बाली बात कुछ कुछ समझ में आने लगी थी | लेकिन समय के साथ ज़ेहन से दिल्ली का डर जाता रहा, कोई एक साल मुंबई में रहने के बाद मैं तीन-चार दिनों के लिए दिल्ली गया था | दिल्ली जाने की वजह थी एक लड़की…, इस लड़की से मेरी दोस्ती ब्लॉगिंग की वजह से हुई थी, ये मेरी पहली ऑनलाइन रिलेशनशिप थी.. कुछ दिन चैटिंग और फ़ोन पर बात करने के बाद मैंने सोचा अब इससे मिल लिया जाए…
यहाँ एक बात गौरेतलब कि जैसे सार्त्र लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिए दार्शनिक बना था, मैंने लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिए लेखन का कार्य शुरू किया था | सार्त्र का तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे अपने इस उदेश्य में निराशा ही हाथ लगी… नहीं कि लड़कियां इम्प्रेस नहीं हुई…. लड़कियां तो बहुतों इम्प्रेस्ड हुई लेकिन गलत तरह की, फिर मैंने पाया कि जो लड़कियां पढने लिखने में ज्यादा रूचि लेती है वो थोड़ी अजीब होती है, इनसे बच कर रहना है ठीक है… ! ऐसा मैं इस लिए कह रहा क्योंकि जिस लड़की से मिलने के लिए मैं दिल्ली गया था, उससे मिलने के बाद मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गयी… जो इमेज उसने अपना मेरे सामने बनाया था वो उसके ठीक विपरीत थी… ज्यादा मैं यहाँ नहीं कहूँगा.. कहना उचित नहीं होगा… खैर दिल्ली जाना इतना निराशाजनक भी नहीं रहा… अपने पुराने दोस्तों से मिला, रिश्तेदारों से मिला…और जिस दिन मैं आने वाला था उस दिन एक चमत्कार हुआ… वो लड़की जिसकी वजह से मैं ने दिल्ली छोड़ा था मुझे कॉल कि बोली, ‘अख़बार में एक वर्ड पढ़ा था ‘leave no stone unturned’ जिससे तुम्हारी याद आ गई…’… खैर, हम शाम में मिले, अगर मेरा प्यार वक़्त के साथ बढ़ जाता है तो इसमें मेरा कोई कमाल नहीं है, जब मैंने उसे उस शाम देखा तो मेरे अंदर से यही आवाज़ आयी, ‘ये तो और सुंदर हो गई है…|’
हाँ मैं बात कर रहा था, मेरी ब्लोगिंग और मेरे लिखने के उदेश्य की…. लेखनी से मिली शुरुआती असफलताओं से मैं पूर्णरूप से निराश नहीं हुआ था, मुझे लेखनी के दम का पता चल गया था, मुझे ये तो समझ आगया था कि शब्दों का लड़कियों पर कमाल का असर होता है…दिक्कत बस ये आ रही थी कि सही टाइप की लड़कियों तक मेरी बात नहीं पहुंच रही थी… मैंने सोचा क्यों न माद्ध्यम बदल कर देखा जाए… इसी सिलसिले में मैं ने अख़बार के लिखना शुरू किया…| वैसे अख़बार से मुझे काफ़ी फायदा हुआ लेकिन मनवांछित फल यहां भी नहीं मिला, खैर जो कुछ भी… ब्लॉगिंग की तुलना में अखबारों के लिए लिखना ज्यादा सुखद था |
(ये जानने के लिए कि कैसे मैं उमर खैयामिक (lover ऑफ़ वाइन, वुमन एंड म्यूजिक) बना…. और कैसे अपनी मौजूदा प्रेमिका से मिला जो किसी और मुल्क से है…इंतजार कीजिए )
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