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सहमा सहमा रहता हूँ

Wise Man's Folly!
Wise Man's Folly!
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जून 27, 2013
Feeling restless, नींद नहीं आ रही है… I told you a lie…. कल मैंने इवनिंग में घर आते टाइम जानबुझ कर नेट ऑफ कर दिया था… मैं उस वक़्त तुमसे बात नहीं करना चाहता था….| आज भी मैं 9 बजे के आसपास घर आ गया था… टीवी देख रहा था जब तुम कॉल की, लेकिन मेरा तुम से बात करने का मन नहीं कर रहा था…, सोच रहा था- कॉल न ही करे तो अच्छा हो | आज कल मैं तुमको कम याद करने लगा हूँ.. पहले मैं तुम्हे हमेशा ‘miss’ करता था, चाहे कुछ भी करता रहूं तुम्हारी याद बनी रहती थी, एक सातत्य बना रहता था…. लेकिन अब बीच-बीच में भूल जाता हूँ तुमको, ध्यान कहीं और चला जाता है, सुधि टूट जाती है…| और अगर कभी miss भी करता हूँ, तो तुमसे बात करने से डरता हूँ… लगता है कहीं फिर झगड़ा न हो जाए कोई इशू ने निकल जाये… बात करने से डर लगता है… सहमा सहमा रहता हूँ…. ये भी लगता है कि कहीं तुम डिस्टर्ब हो जाओगी…. या फिर शायद तुम नहीं चाहती कि मैं तुम्हे कॉल करूं… ख़ुद को बोझ सा फील करता हूँ तुम्हारे ऊपर, ऐसा लगता है जैसे मैं ख़ुद को तुम पर थोप रहा हूँ….
वो जो सब कुछ पहले नेचुरल लगता था अब कम हो गया है… | कुछ चीज़ें फेक लगने लगीं हैं…!! कई दिनों से दिल पर बोझ फील कर रहा था.. सोचा अब मुझे तुमसे ये सब शेयर करना चाहिए… इस सब के पीछे क्या कारण है मुझे पता है…, मैं ऐसा क्यों फील करने लगा हूँ शायद मैं जानता हूँ… कई वजूहात हैं, पहला- तुमको लेकर मेरी बढ़ती हुई उम्मीदें, मेरी एक्सपेक्टेशन बढती ही जा रही है, दूसरा- तुम्हारे कहे कुछ अल्फाज़ों ने दिल को चोट पहुंचाया है, शब्दों से घायल हो गया हूँ, तीसरा- मुझे लगता है आज न कल तुम मुझ से दूर हो जाओगी…(’अभी मिले नहीं हैं लेकिन जुदाई का मलाल है’), ऐसा इसलिए लगता क्योंकि आजकल हम छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगे हैं, बिल्कुल आवामी प्रेमी की तरह…!! कभी कभी लगता है यह प्रेम की अनंत यत्रा का एक पराव मात्र है, मंजिल नहीं, एक phase है गुज़र जाएगा…(This too shall pass.) हम इससे बहार निकल जाएंगे, और निखर जायेंगे…… लेकिन साथ ही साथ यह डर भी लगता है कि कहीं हम हम टूट के बिखर न जाएं… अभी हम इतने गहरे नहीं जुड़े हैं कि चाह के भी अलग न हो पाएं…
कल जब मैं तुमसे बात कर रहा था तो पहली बार मुझे लगा कि हमारे ख्यालात नहीं मिलते हैं, हमारी सोच अलग है, हम अगल हैं (ऐसा तुमने भी मुझे झगड़े के बाद कहा था ‘हम अलग हैं, हमारा कुछ नहीं हो सकता’)..| ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा नहीं लगता था लेकिन पहले तुम अपनी-अपनी लगती थी, लेकिन अब दूर की लगती हो.. दूर उस गैर मुल्क की…जिसकी एक पर्सनल ज़िन्दगी है, एक जॉब है, दोस्त हैं बहुत सारे, फेसबुक है, फेसबुक पर अनेकों चाहने वाले हैं … जिसकी अपनी सोच है, जिसका सब कुछ अपना अपना है… जिसको सोच कर और वक़्त देख कर मुझे कॉल करना होता है, सोच कर बोलन होता है… जिसकी ज़िन्दगी का मैं के सिर्फ हिस्सा हूँ.. जो कभी भी नहीं भी हो सकता है… हिस्सा ही हूँ ज़िन्दगी थोड़े न…!!!
“उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी है, न पूछा जाए उससे, न बोला जाए है हमसे”

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