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ये चुरन-चटनी बंद करो

Wise Man's Folly!
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जून 29, 2013
तुम्हारी भाषा में कहते हैं न कुछ उसको.. उम्म्म्म…‘ख़ुद-एतमादी’…?? शायद यही…!! अब ये नहीं रहा.. चलो अच्छा ही हुआ… बहुत अकड़ थी मुझ में…
… हालत बहुत ख़राब है|
इस तरह शायद मर जाऊं.. या फिर सच में पागल हो जाऊं.. उसी आवाज़ में.. उसी लहजे में.. उसी ‘टोन’ में दिन भर अकेले अकेले तुमसे बातें करता रहता हूँ… पता नहीं क्या क्या कहता रहता हूँ तुमको… ख़ुद ही बोलता हूँ ख़ुद ही सुनता हूँ… तुम चुप-चाप सुनती रहती हो… एक बार भी डांट कर नहीं कहती मुझसे ‘पगलू, ये चुरन-चटनी बंद करो…’ कलेज़ा फट रहा है..! लग रहा है जैसे सर फट जायेगा….!! न ठीक से बोला जाता है न ही ठीक से चल-फिर ही पाता हूँ…| अंदर सब कुछ रुका रुका लगता है.. सुबह में थिएटर की टिकट बुक की थी… शाम को वो देखने गया था… रस्ते भर रोता रहा… कभी बाहर तो कभी अंदर दिन भर रोता रहता हूँ | अकेले में बडबडाता रहता हूँ…! काश के तुम एक बार आ के देख लेती क्या हालत हो रखी है मेरी ‘तुम से बिछड़ कर’…!!! एक सिगरेट बुझती नहीं थी कि दूसरी जला लेता था, “तुमसे अच्छी तो ये सिगरेट है जाना, दिल को तो जलती लेकिन होंठों तक तो आती है”… शो देखने से पहले बार में जा कर शराब भी पी.. सुना था पीने से दर्द कम होता है, सो ग़म ग़लत करने के इरादे से पहुँच गया मयकदे में, “मैं मयकदे की राह से हो कर निकल गया, वर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था” बार देख के पैर अपने आप रुक गये… पहलीबार था अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, लेकिन गया… अफ़सोस पी के भी सुकून नहीं मिला…!!! 🙁 वो सुकून जो तुम्हारी क़ुर्बत में मितला था, चुप करके तुम्हारी बातों को सुनते रहना, काली रेशमी जुल्फ़ों के बीच घिरे चांद से छटकती नूर को आंखों से पीना… तुम्हारी लबों के जुम्बिश को निहारना और फिर अरमानों का मचल जाना.. चेहरे पर कितने तिल हैं ये पता करना… वो सुकून अब कहीं नहीं मिलता, कहीं नहीं !!!!
तुम्हारी छोटी-छोटी बातें दिन भर रुलाती रहती हैं.. जी करता है सिर पटक पटक के जान दे दूं… बर्दाश्त नहीं हो रहा है मुझसे ये सब… वो जो पीला दुपट्टा तुम मेरे पास छोड़ कर गयी थी, अक्सर उसको चूमता रहता हूँ..| याद है पहली मुलाकात की वो घड़ी जब तुमने अपने नर्म होंठों से मेरी पेशानी को चूमा था, आज भी सिहरन महसूस होती है माथे पर…!!
कभी कभी सोचता हूँ ‘तुम भी मुझे याद करती होगी क्या…??’ फिर सोचता हूँ कितनी तो बिजी रहती है वक़्त कहां होता तुम्हारे पास…!! सोचता हूँ कि अपने दिल-की तुम्हे रिकॉर्ड कर के भेज दूं… नहीं छोड़ो क्या परेशां करना तुमको….., अगर आवाज़ ही सुननी होती तुमको तो छोड़ कर ही क्यों जाती…!! कभी कभी सोचता हूँ दिन भर तुमको मेसेज करता रहूँ… लेकिन नहीं.. परेशान हो जाओगी तुम… वैसे भी दर्द कोई फ़साना तो नहीं जो तुमको सुनाऊँ… और तुम सुनोगी इस बात का भी शक है.. ज्यादा लम्बा नहीं लिखता… डर लगता है कि कहीं तुम ऊब न जाओ… जल्दी ही ये सब भी बंद हो जायेगा… या तो मर जाऊंगा….या पागल हो जाऊंगा…!! जी रहा हूँ लेकिन जीना नहीं चाहता हूँ…| कोशिश करता हूँ कि कोई नया बहाना ढूँढूं लेकिन दिल बहलता नहीं है | सर में बहुत तेज़ दर्द है, रुक रुक के लिख रहा हूँ एक हाथ से सिर को दबाना पड़ता है… ‘शायद तुमने जाने का मन बहुत पहले बना लिया..किसी बहाने की तलाश भर थी तुम को’…
बहुत बहुत याद आती हो तुम… जा रहा हूँ कहीं अभी … byee लव यू…!!!

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