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मुझे एक काला धब्बा नजर आ रहा है

Wise Man's Folly!
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रात चमन ने सोने से पहले मुझे एक कहानी सुनाई, उसने कहा कि “सात सौ साल पहले सात सफेद कबूतर घाटी की गहराई से बर्फ-से सफेद पहाड़ों की ओर उड़े।

उनकी उड़ान को देखने वाले सात लोगों में से एक ने कहा, “सातवें कबूतर के परों पर मुझे एक काला धब्बा नजर आ रहा है।”

आज उस घाटी के लोगों को सफेद पहाड़ों की ओर उड़े वे सातों ही कबूतर काले नजर आते हैं।”

कहानी सुनने के बाद मैंने चमन से पूछा, ‘ये कहानी तुम्हे समझ में आई..?’ “अगर समझ में आ ही गई होती तो तुम्हे क्यों सुनाता..?” ‘बात तो तुम्हारी भी ठीक है, चलो मैं तुम्हे इस कहानी का आशय समझता हूँ |’ चमन जो अब तक छत को घूर रहा था, मेरी तरफ करवट ले लिया…| ‘ये कहानी एक गहरा मज़ाक है, ये कहानी हमारी मूढ़ता का मज़ाक उड़ा रही है, ये कहानी ये कह रही है कि हमारी जितनी भी धारणाएं है, रीती-रिवाज़ ,मान्यताएं हैं, विश्वास और कर्म-काण्ड हैं, जिसके पीछे हम अपनी जान देने को तैयार रहते हैं, जिनको सही सावित करने के लिए थोथी दलीले गढ़ते हैं, वो सब कुछ नहीं बस किसी बेवकूफ के द्वारा फैलाई गयी अफवाह है, हमारी सारी मान्यताएं, हमारे सब विश्वास, किसी बेवकूफ को उजले कबूतर में एक काला धब्बा नजर आ जाने का नतीज़ा है |’
मेरी बातों को सुनकर चमन जो अब तक लेटा था एक दम से उछल कर बैठ गया, शायद फिर से उसकी बुद्धि खुल गयी थी | इससे पहले कि चमन कुछ पूछता मैंने कहा, ‘कुछ भी पूछने से पहले, मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दो, क्या तुम भगवान को मानते हो…? मंदिर जाते हो..?’ “मंदिर तो कभी कभी ही जा पता हूँ, लेकिन भगवान को ज़रूर मानता हूँ”, फिर मैंने अगला सवाल पूछा, ‘क्या तुम ये मानते हो कि भगवान ने दुनिया को बनाया है…??’, “तो और किसने बनाया है, मैं ही क्या सब मानते हैं इसको”, चमन अंदर से डर गया था जिसको वो क्रोध से छिपाने की कोशिशि कर रहा था, उसे डर था कि मेरी बातें कहीं उसके अंदर हलचल न पैदा कर दे…हर इंसान अपनी मान्यताओं के साथ सुकून से जीना चाहता है, उसकी मान्यताओं पर चोट करने का मतलब है उसकी नींद में बधा डालना, उसके सपनो से तोडना, कौन सुनहरे सपनों से जागना चाहता है…???, चमन भी कोई अपवाद नहीं है, मुझे कहानी तो सुना दिया था उसने, लेकिन कहानी को मैं जो अर्थ दे रहा था उससे वो थोडा चिढ गया था |
मैं अच्छे से चोट करने की नियत से पूछा, ‘ठीक है, अब मुझे ये बताओ, ये जो तुम भगवान को मानते हो, कभी कभी मंदिर जाते हो, और ये भी मानते हो कि भगवान ने दुनिया को बनाया है, इस के अलावे भी बहुत कुछ मानते होओ गे…?’ “हाँ पचास बातों को मानते हैं और उनमे से बहुतों का पालन भी करते हैं |” मैं ने गहरी सांस ली और फिर उससे पूछा, ‘ये सब तुम अपने स्वयं के बोध से करते हो या किसी से सिखा है, किसी ने कह दिया भगवान ने दुनिया बनाया, या भगवान है, और तुमने मान लिया है…??’ “सब मानते हैं, सब करते हैं सो हम भी करते है, हम क्या समाज से बहार हैं..|” चमन अब समझ गया था कि वो फसने वाला है सो वो थोडा उदिग्न हो गया, मैंने भी ज़ोर देते हुए पूछा, ‘सब से तुम्हारा क्या मतलब है कौन सब..?’ “मेरे घर के लोग और कौन, पिता जी से सिखा है दादा जी से सिखा है”, ‘हम्म्म, तो तुम ये कह रहे हो कि ये सब मान्यताएं तुम्हे अपने घर वालों से मिली है, ये सब तुम्हारी नहीं है, ये सब ऐसी चीज़े हैं जो बस तुम इस लिए कर रहे हो या मानते हो क्योंकि सब ऐसा ही कहते और मानते हैं |’ चमन थोडा असहाय होते हुए बोला, “हाँ ऐसा ही समझो |” ‘तो चमन, तुमने कभी ये जानना चाहा कि तुम्हारे घर वालों ने जो कुछ भी तुम्हे अब तक सिखाया है या अभी भी सिखा रहे हैं वो उनका अपना है या वो भी तुम्हारी तरह वही कर रहे हैं जो सब कर रहे हैं, वही दोहरा रहे हैं जो सब दोहरा रहे हैं….?’ चमन ‘चुप’…वो निःशब्द था…, उसकी आँखे छोटी हो गयी थी, शायद वो मेरी बातों पर गहनता से विचार कर रहा था, शायद उसे दिखने लगा था कि कैसे अंधानुकरण में वो अपनी जिंदगी नष्ट कर रहा है| मुझे लगा वो इस बोध कथा पर ध्यान करना चाहता है, सो उसे अकेला छोड़ देने की नियत से मैं चादर से मुंह ढक कर सो गया…|

सुबह चाय की टेबल पर चमन ने मुझसे पूछा, “इस मशीनी ज़िन्दगी से निकलने का तरीका क्या है?” मैं बिना कुछ बोले दीवाल की और इशारा किया जहाँ एक पोस्टर पर लिखा था
“Drink your tea slowly and reverently,
as if it is the axis
on which the world earth revolves
– slowly, evenly, without
rushing toward the future;
Live the actual moment.
Only this moment is life.”

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