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शिप्रा-सूफी संवाद

Wise Man's Folly!
Wise Man's Folly!
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“आपने अपना नाम कब से बदल लिया?”……रांझा रांझा करदी वे मैं आपे रांझा होयी…!!
“आपको क्या लगता है महानुभाव, मजे लेना सिर्फ आपको ही आता है.”….. गलत समझ ली तुम, मैं ने मजाक किया था, मजे लेने का तो सवाल ही नहीं उठता है, क्योंकि पहली बात तो मुझे मजे लेने की ज़रुरत ही नहीं है, ऐसा नहीं है कि मैं यहाँ उदास और उबा हुआ बैठा हूँ और ये सब कर के ख़ुद को एंटरटेन कर रहा हूँ, ऐसा बिलकुल नहीं, और जब हम किसी से ये कहते है ‘मैं बस तुम्हारे साथ मजे ले रहा था’ तो ये अपमान है उस व्यक्ति का…तुम कोई वस्तु नहीं हो जिसके साथ मैं मजे लूं,…. I respect your individuality; I never take any person for an object. मजे लेने की बात मैं सिर्फ इसलिए करता हूँ कि बातें इतनी गंभीर होती है कि यदि उसको हल्का करके न कहो तो कोई लेने कोई तैयार ही नहीं होगा…चीनी की गोली के साथ दवाई मिला कर देने में आसानी होता है, लेने वाला आसानी से ले लेता हैं…अहंकार बीच में नहीं आता है…| तुम्हारी सुविधा के लिए मजे लेने की बात कही थी मैं ने…. मेरे शब्दों पर मत अटका करो… खाली स्थान को पढ़ों…
तुम शायद सोच रही हो कि तुम मुझ से लड़ रही हो या मजे ले रही हो या मुझे सुधार रही हो..पर तुम अगर थोड़ी सजग हो कर देखोगी तो पाओगी मामला कुछ और ही है…!! पता चलेगा लड़ाई तो बस बहाना था, ये सब बस तैयारी थी, असली बात कुछ और था…!! मनुष्य की प्यास एक ही है…!! अपने कृत को रैशनलाईज़ करने की ज़ल्दी मत करो…
“हम भी देते रहेंगे..क्योंकि तर्क में सीमाएं होती हैं…कुतर्क में तो कुछ भी बोल सकते हैं…”…… भूल है तुम्हारी जल्दी ही तुम थकोगी, और जैसे ही तुम थकोगी असली बात तुमको समझ में आएगी, बुद्धि को थकाना ज़रूरी हो जाता है… जैसे ही कोई मुझ से बहस करता है मैं खुश हो जाता है क्योंकि अब उस आदमी को कोई नहीं बचा सकता है…उसका भ्रष्ट होना तय है…!! धीरे धीरे भ्रष्ट कर दूंगा मैं तुमको, ये मेरा रोज़ का धंधा है…यही काम ही करता हूँ मैं.. अभी मेरे ऑफिस में एक लड़की है वो बता रही थी ‘रात को जब सो रही होती हूँ तो तुम्हारी बातें मेरी कानों में गूंजती रहती है, मेरी माँ कहती है कि ऑफिस बदलो, जब से ऑफिस जाना शुरू की को अजीब होती जा रही हो’……. इसीलिए जीतनी होशियारी तुमको दिखानी है दिखा लो…लेकिन बचना तुम्हारा मुश्किल है…
“हर बात के दो पहलू होते है। खुशी हुई जानकर…कि आप दूसरे पहलू को भी समझते हैं”…… गलत कारण से खुश हो गयी हो तुम, हर बात के कम से कम सात पहलू होते हैं…इतनी जल्दी निर्णय पर मत पहुंचो…!!!
“सोच के बिना तो जानना संभव ही नहीं!”, एक झेन सूत्र कहता हूँ तुमसे, ‘Sitting silently, doing nothing, spring comes and grass grows by itself.’ इस सूत्र पर ध्यान करना…. अब ये गुरु शिष्य संवाद पढो….
Monk: “What does one think of while sitting?”
Master: “One thinks of not-thinking.”
Monk: “How does one think of not-thinking?”
Master: “Without thinking.”
विचार पुनुरुक्ति है, जुगाली की प्रिक्रिया है…कभी शांत बैठ कर अपने विचारों को देखो, फिर तुम्हे मेरी बात समझ में आएगी, इसको नियम बना रोज़ एक घंटा, एक समय तय कर लो और उसी समय पर एक आरामदायक आसन में बैठ जाया करो आंखे बंद कर के, एक बार बैठ गए फिर अगले एक घंटे तक चाहे कुछ भी हो जाये शरीर को हिलाना डुलना मत, पत्थर की तरह जम जाना..!! इसको झाजेन कहते हैं जापान में…शांत चुप चाप बैठ रहना है न शरीर से कुछ करना है न कुछ सोचना है, अगर विचार उठे तो उसे बस शांत देखते रहना है…उन से उलझना नहीं है…अगर कुछ बिना किए बैठे रहने में शुरू में दिक्कत हो तो सांस के आते जाते हुए देखो….!!! जल्दी ही बसंत आया गा और फूल खिलेंगे…तुमको कुछ करने की ज़रुरत नहीं होगी…सोच विचार आप ही छुट जायेंगे…..!!! ये जिसको तुम अभी असंभव कह रही हो वो सब संभव हो जायेगा…, ‘एक अचंभा मैंने देखा नदिया लागी आग’..|
“24000 किताबें पढ़कर ‘खुद में ‘सबकुछ जान लेने का वहम’ पैदा करता है”,….. सांस लेने के कोई 82 तकनीक है, जिनमे से कुछ ऐसे हैं जिससे तुम्हरा बोध इतना जग सकता है कि किताब को सिर्फ छू कर तुम ये जना सकती हो कि उसमे की लिखा है…मेरे एक मित्र हैं पटना के वो किसी भी किताब के तीन पन्ने को पलट कर उस पुरे किताब में क्या लिखा है तुमको बता सकते हैं… विवेकानंद ने आपनी डायरी में कहीं लिखा है, “I could understand an author without reading his book line by line. As this power developed I found it unnecessary to read even the paragraphs.”
तुम चौबीस हज़ार से परेशान हो रही है, मेरे मूड पर कभी भी चौबीस को एक लाख कर दूँ…| ऐसा नहीं है कि ऐसा विवेकानंद या सूफी ध्यान मुहम्मद ही ऐसा कर सकता है…अगर तुमको ‘breathing technique’ जानना हो तो तुम को भी बताया जा सकता है.. प्रयोग कर दे देखो, मेरी बातों को मानने की भी कोई ज़रुरत नहीं है…सरल विज्ञान… इस में तुमको इतनी हाय-तौबा मचने की ज़रुरत नहीं है…!! जो एक को हो सकता है वो सब के लिए संभव है…!!!
“‘जिस खाली दिमाग शैतान का घर’” मैंने झूठ बोला था, ‘खाली दिमाग परमात्मा का घर होता है’ सारे धर्म की यही खोज है के कैसे दिमाग को खाली किया जाये…!! “जिस खाली दिमाग शैतान का घर” ये कहावत झूठ है, किसी बुद्धू की बनाई हुई है…नासमझ के द्वारा कही गयी है…!!
“कितने नाम हैं आपके”…. सब नाम मेरे हैं, फिर भी मैं अनाम हूँ…’ The Tao that can be spoken is not the eternal Tao. The name that can be named is not the eternal name. The nameless is the origin of Heaven and Earth. The named is the mother of myriad things. Thus, constantly free of desire. One observes its wonders. Constantly filled with desire
One observes its manifestation.These two emerge together but differ in name.The unity is said to be the mystery. Mystery of mysteries, the door to all wonders.
“भगवान ने आज तक नहीं कहा कि वह ‘भगवान’ हैं”… शयद तुमने उपनिषद के ऋषियों की उद्घोष नहीं सुनी जब उन्होंन ने कहा ‘ah-HUM brah-MAHS-mee’ ‘मैं ब्रह्म हूँ’. शयद तुमने मंसूर को नहीं सुना जब उसने कहा ‘”ANALAHAK, ANALAHAK — I am the God.” शयद तुमने कृष्ण को नहीं सुना जब वो अर्जुन से कहते हैं, ‘हे अर्जुन, सब मैं ही हूँ, सब छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ.. ‘Sarva-dharman parityajya mam ekam saranam vraja’: “Give up all other duties and surrender unto Me.”
शयद तुमने नहीं सुना जब बुद्ध ने कहा ‘Es dhammo sanantano’.
लेखनी में इतना विरोधाभास क्यों?…ताकि तुम थको, ताकि तुम्हारी बुद्धि घूम जाये… सत्य को कहने का कोई और ढंग नहीं है..!!
“मैं मूर्ख हूं या बुद्धिमान?”- …..तुम मुर्ख हो ये बात आधी सही और पूरी गलत है, और तुम बुद्धिमान हो ये बात आधी गलत और पूरी सही है..!!
“मतलब आप मानते हैं कि आप बड़े ‘निचले-स्तर; की बात कर रहे हैं!” Yes..! I am a fallen man.
“बिना सोचे आपने वह भी लिख दिया होगा.” तुम चूक गयी..!!
“बहुत खूब..लतीफे स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते हैं”.. हा..हा..हा.. लतीफा वाकई अच्चा था… !!
“मैं बच्ची हूं या बुढ़िया, यह तो और बात है”- शरीर के बढ़ जानने से चित नहीं बढ़ जाता है… बुद्ध कहते हैं अज्ञानी मनुष्य का ‘शरीर तो बैल की तरह बढ़ता है लकिन चित में कोई विकास नहीं होता’ और मैं बुद्ध से सहमत हूँ… समझी बच्ची…??
“मैंने आकाश मांगा ही नहीं!”… मेरी उदारता देखो तुम मांगी भी नहीं और मैं दे रहा हूँ…!! कुछ तो शर्म करो… ‘Thankyou’ बोलो..!
“जबरदस्ती का आकाश आप ही रखो सूफी जी”…. तुम सच में बेवकूफ हो, ‘आकाश’ मतलब जो नहीं है…’That which is not, is sky. तुम्हे पता नहीं तुम क्या लेने से मना कर रही हो…रोओगी एक दिन…देख लेना..!!!
“‘बड़े भाई साहब’, frustration में तो आप दिख रहे हो.”… कब तक दृश्य में उलझी रहोगी…अपनी आँखों पर संदेह करना सीखो…!!!
“आप जैसे दर्जनों भाई साहबों की कृपा से”… तुम मेरा तो अपमान कर ही रही हो साथ साथ उन लोगों का भी अपमान कर रही हो जिनसे तुमने कभी कुछ सिखा है… ‘कोई किसी के जैसा नहीं होता है’…!!!
“सम्राट की जो इच्छा होती है, वह गरीब को दे देता है” अभी आकाश दे रहा था तुमने लेने से मना कर दिया…!! मेरी भी मज़बूरी समझो…!!

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