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‘शर्मा जी बेईमान हैं’, ‘शुक्ला जी बहुत अच्छे इंसान हैं’, ‘ये लड़की बहुत सुन्दर है’, ‘आज बहुत गर्मी है’, ‘ये संगीत अच्छा नहीं है’, ‘वो घमंडी है’, ‘मैं लड़का हूँ’, ‘तुम हिन्दू हो’, ‘ये अच्छा है वो बुरा है’, इत्यादि..इत्यादि… ये सब हमारे ‘मत’ हैं, विचार हैं जो हम खुद या दूसरों को ले कर प्रतिपल बनाते रहते हैं | लेकिन क्या आपको पता है कि ‘मत’, ‘अनुभूति’ या जिसको हम ‘ख्याल’ या ‘विचार’ कहते हैं वो हमेशा ‘धोखा’ होता है, और बिना किसी अपवाद के सदा झूठ होता ….?? कहने का मतलब ये है कि हम अपने बारे में या दूसरों के बारे जो भी राय कायम करते हैं वो हमेशा ‘भ्रम’ होता है, और सत्य से कोसे दूर होता है..! हमारे किसी भी ‘मत’ या ‘विचार’ का सत्य से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है..| सच तो ये है हम कभी भी किसी भी के साथ ‘सीधा संबंध’ बनाते ही नहीं है..| तो क्या इसका अर्थ ये हुआ कि हम पूरी ज़िंदगी ‘भ्रम’ में जीते हैं..? जी हाँ ! इसका यही मतलब हुआ, “हम पूरी ज़िन्दगी ‘भ्रम’ में जीते हैं”..| ‘हमारा कोई भी ‘मत’, विचार, या अनुभूति आंशिकरूप से भी सच नहीं होता है |
अगर कोई आपका बहुत करीबी और खास आदमी आपके पास आ कर ये कहे कि ‘आप के पति/पत्नी का किसी और के साथ चक्कर है, उसने आपके पति/पत्नी को किसी स्त्री/पुरुष के साथ संसर्ग करते हुए देखा है’, तो एक पल के लिए ही सही लेकिन आपके मन में अपने पति/पत्नी के प्रति संदेह पैदा हो जायेगा | लेकिन क्या आप एक दम सुनिश्चित हो जायेंगे कि ये आदमी जो कुछ भी कह रहा है आपको आपके पति या पत्नी के बाबत वो सब सच ही होगा..??? नहीं ऐसा आप नहीं करेंगे, खबर लाने वाला कितना भी बड़ा विश्वास-पात्र क्यों न हो, अगर आपके अंदर थोड़ी भी बुद्धि है तो आप आँख मूंद कर उसकी बातों पर यकीन नहीं कर लेंगे..| लेकिन क्यों नहीं करेंगे उस पर पूरा यकीन…?? इसीलिए न कि वो ‘दूसरा’ है, गलत खबर भी ला सकता है, हो सकता है कि किन्ही अज्ञात कारणवश वो आपको आपके पति/पत्नी से लड़वाना चाहता हो.. कुछ भी हो सकता है, ‘दूसरा आखिर दूसरा ही होता है’,..| लेकिन मान लीजिये आप खुद अपनी आँखों से अपने पति/पत्नी को किसी और के साथ बेड में रंगे हाथो पकड़ते है, तब आप क्या करेंगे..???? क्या उस वक़्त भी संदेह करेंगे..?? क्या उस वक़्त आपके अंदर ये भाव पैदा होगा कि ‘जो मैं देख रहा हूँ वो गलत भी हो सकता है’…?? क्या उस नाज़ुक क्षण में आप अपने अंदर किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया को उठने से रो पाएंगे…?? अगर उस नाज़ुक क्षण में आपको अपने ऊपर शक नहीं होता है, अपने आँखों के प्रति आप के अंदर संदेह नहीं उठता है, और आप बिना कोई प्रतिक्रिया किए नहीं रह सकते हैं तो समझिए आप ‘जीवन भ्रम में जी रहे हैं’… क्योंकि आँखे भी उतना ही झूठ बोलती हैं जितना कि कोई दूसरा आदमी बोल सकता है |
बाहर जिसको हम ‘दूसरा’ कहते हैं वो एक पल के लिए तो अपना हो भी जाये, लेकिन हमारे ‘आँख’, ‘कान’, ‘नाक’, ‘जीभ’ और ‘त्वचा’ कभी भी अपना नहीं होता है…| हम जो कुछ भी ‘आँख’ से देखते और ‘कान’ से सुनते या फिर ‘त्वचा’ से छू कर महसूस करते हैं सब झूठ होता है…!! ‘इंद्रियों के माध्यम से जो भी जानकारी हमारे पास आती है वो निरपवाद रूप से गलत होता है’ | इसको ऐसा कहें तो ज्यादा ठीक होगा, ‘माध्यम के द्वारा हम जो भी जानते हैं वो हमेशा गलत ही होता है’, चाहे ‘माध्यम’ फिर कोई भी हो, और पांच ही माध्यम हैं हमारे जो बाहर से ख़बर भीतर हमारे पास लाते हैं |
हर किसी के ज़िन्दगी में ऐसे कई मौके आते हैं जब ये अनुभव में आता है कि हमारे आँख, कान, जीभ, आदि झूठी खबर देते हैं, कई बार ये पता चलता है कि जो हमने आंख से देखा था वो बाद में गलत निकला था, जो कान से सुना था वो बाद में झूठ निकला था.. हर किसी को अनेकों बारे ऐसे अनुभव होते हैं, लेकिन हम इन अनुभवों को अनदेखा कर देते हैं..क्योंकि इन्ही पांच से हमें काम लेना है अगर हम इन्हीं पर शक करने लागे तो जीना ही मुश्किल हो जायेगा…हज़ार मुसीबत पैदा हो जाएगी ज़िन्दगी में… इसीलिए हम मज़बूर हो कर इन्ही पांचो पर भरोसा करते हुए जीते चले जाते हैं..|
ऐसा नहीं है कि इन पंचों के साथ हमारा सीधा संबंध है, इन पंचों को भी किसी ‘माध्यम’ से ही जानते हैं, ये पंचों जो भी ख़बर इकठ्ठा करते हैं वो ये ‘मन’ को भेजते हैं, मन इनका मुखिया है, ‘मन’ अपने हिसाब से पहले ‘ख़बर’ के साथ छेड़-छाड़ करता है, उसको मसालेदार बनता है फिर हम तक पहुंचता है..!! बहुत झोल-झाल हैं..! जो राजनीती हम बाहर की दुनियां में देखते हैं वो कुछ भी नहीं है, असली राजनीती तो हमारे अंदर चल रही होती है…!! हमारे ये पांच ख़बरी लाल और इनका मुखिया मन निरंतर हमारे विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते हैं, बहुत बड़े प्रपंच के शिकार हो रहे हैं हम…! रात भर मन हमें सपनों में उलझा कर रखता है, और दिन में विचारों के जाल में फसा कर रखता है…हमें कभी भी कुछ सीधा देखने का मौका नहीं देता है ! ऐसा करने के पीछे इनका अपना स्वार्थ है.. अगर हम सब के साथ सीधा संबंध बनाने लगेंगे तो इन लोगों की छुट्टी हो जाएगी…इनका धंधा चौपट हो जाएगा..!
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