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मुर्खता की कोई हद नहीं होती है

Wise Man's Folly!
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मुर्खता की कोई हद नहीं होती है
1 MINUTE AGO SUFI DHYAN MUHAMMAD महिला जाग्रति 0 COMMENTS
“इस ब्लॉग के कंटेंट को हटा दिया गया है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत आक्षेप लगाए गए थें” मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि किसी को मुर्ख, मंदबुद्धि या बेहोश नहीं बोलूं…लेकिन मेरी भी मजबूरी है, अब मुर्खता को मुर्खता नहीं कहूं तो और क्या कहूं…??? मित्र आनंद प्रवीन तुम्हे तनिक भी होश है कि तुम क्या कह रहे हो…और तुमने इस पोस्ट को हटा कर क्या किया है…???

कृष्ण ने गीता व्यक्तिगत रूप से अर्जुन से कही थी, फिर क्यों तुम और तुम्हारे देश के जाहिल लोग पिछले पांच हज़ार साल से गीता का बोझ अपनी छाती पर ढो रहे हैं… अरे, चूल्हे में डाल दो उसको, कृष्ण ने तुमसे तो नहीं कहा था, अब तुमको क्या लेना देना है उस किताब से….?? तुम्हारे सारे उपनिषद् व्यक्तिगत हैं…. गुरु-शिष्य संवाद है… उपनिषत तो इतने व्यक्तिगत हैं कि उनमे यहाँ तक कहा है जो सूत्र जिस व्यक्ति को दिया जा रहा है वो उसी के लिए है.. जला कर राख कर दो सब को… तुम्हारा अष्टावक्रगीता जनक और अष्टावक्र की आपसी बात-चीत है… फेक दो उसको पानी में… क्यों ढोते हो इन सब का बोझ… सब नितांत रूप से व्यक्तिगत है… बुद्ध के सारे ग्रंथ व्यक्तिगत हैं… थूक दो उनपे भी….!!

तुम्हे तनिक भी समझ है कि तुम क्या बोल रहे हो..?? तुम्हारे सारे ग्रंथ में व्यक्तिगत आक्षेप लगाए गए हैं, कभी पलट के देखा है कि नहीं…?? तुम्हारे वेदों में व्यक्तिगत निंदा है, औरतों का अपमान है, अश्लीलता से भरे हैं.. तुम क्या सोचते हो कि कृष्ण ने व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगाए हैं गीता में…???

खजुराहों के मंदिरों को ध्वस्त कर दो, सारी मूर्तियाँ व्यक्तिगत हैं,… मीरा के पदों को मिट्टी में मिला दो उसके सारे गीत व्यक्तिगत हैं| आनंद कुछ तो सोच-विचार करो मित्र…!!

अभी सुनने में आया है कि तुमने शादी की है… किससे शादी की है व्यक्ति से कि समाज से…?? व्यक्ति से ही किये हो न..? कर लेते समाज से शादी.. क्यों नहीं किये…?? जब तुमको अपने धर्म पत्नी से कोई शिकायत करनी होती है तो तुम क्या करते हो..समाज को सुधारने चले जाते हो…?? अभी सरिता जी कह रही हैं, “जब समाज का रूपांतर होता है तभी व्यक्ति रूपांतरित होता है.” अभी आपके पुत्र और पुत्री शिक्षित हो रहे हैं…क्यों..? समजा को शिक्षित करना था न…?? अभी आप लोग मेरे विरोध में क्यों हैं..? जाइये जा कर के समाज को सुधारिए मैं आप ही सुधर जाऊंगा…|

“कच्चे माल से सृजन करने मे कोई विध्वंस नही होता” कबीर ने गया है, ‘बूंद समानी सागर में सो कित हेरत जाए…हेरत हेरत हे सखी कबीरा रहत हेराई..’ कच्चे माल से रंग-रोगन किया जा सकता है रूपान्तरण नहीं..| वैसे मुझे आप से लड़ने का मूड नहीं है, मैं आपके रिप्लाई को पढ़ कर हंस रहा था… I really felt good and always feel good to read you…I almost force myself to argue with you. आदतन आप से बहस कर लेता हूँ लेकिन अन्दर से फीलिंग नहीं आती है लड़ने की..So I am very sorry आपकी सारी बाते गलत हैं लेकिन I won’t argue now, I have got many people to argue with, having good time these day, lots of intellectual exercise!!

“पूर्ण खाली या पूर्ण भरा गगरी किसी काम का नहीं होता// यदि ऐसा होता तो बाजार में इसके सहर्ष खरीददार नहीं होते.” – पहली बात ये लाइन व्यक्तिगत था..किसी खास व्यक्ति से कहा गया था…समझ नहीं आया अपने इसे यहाँ मेरे लिए क्यों इस्तेमाल किया…??? दूसरी बात, घरे की व्यभारिक उपयोगिता से मैं ने कभी इनकार नहीं किया, I had said, ‘एक में से कुछ निकाल नहीं सकते हैं और दुसरे में कुछ दाल नहीं सकते हैं’… I had just pointed my finger towards moon, my finger is not moon, so, biting the finger is of no use. “क्रोध में मनुष्य की तर्क शक्ति भी क्षीण होती है” very true, but ऐसा तब होता है जब क्रोध बाहर से थोपा गया हो…तब नहीं जब कोई जानबूझ कर क्रोध में उतरा हो…!!!

“इस आलेख में इतना कुछ मिल जाएगा कि गीता और कुरआन में ढूढने से भी नहीं मिले.” मित्र तुम से सहमत हूँ…!! और गीता और कुरान है ही क्या, इसी तरह की बात-चीत है..!! खैर, कोई नहीं..!

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