Menu
blogid : 9992 postid : 646538

‘मेरा नाम शिप्रा पाराशर है, मैं कोई गुमनाम नहीं’

Wise Man's Folly!
Wise Man's Folly!
  • 76 Posts
  • 902 Comments

‘आपने अधजल गगरी छ्लकत जाय’ वाली कहावत सुनी होगी’- …. जी अवश्य सुनी है..लेकिन किन्ही और अर्थों में, लोगों ने गलत अर्थ दे दिया है इस कहावत को..| मेरे देखे, आधा भरा होना गरिमापूर्ण बात है..और छलकते हुए जाना गगरी का सौभाग्य है..!! मेरे लिए पूर्णता मृत्यु का पर्यावाची है…पूर्ण खाली या पूर्ण भरा गगरी किसी काम का नहीं होता, एक में से कुछ निकाल नहीं सकते हैं, और दुसरे में कुछ डाल नहीं सकते है | सामंजस्य नहीं है.., अति है और अति के साथ सौंदर्य समाप्त हो जाता है..| अति विक्षिप्ता है, और मज़ा ये है कि मन हमेशा दो अतियों में झूलता रहता है !! मैं तो कहता हूँ धन्यभागी हैं वे लोग जो आधे खाली हैं और छलक रहे हैं…| जो छलके नहीं वो बाँझ,.. न तो खाली गगरी से किसी का भला हो सकता है न ही भरी गगरी से..!! इसीलिए बुद्ध कहते हैं ‘”Madhyamika” ..|
“आपकी ‘निहायती बीमार सोच”, ……. फिर आप गलती में हैं, ऐसा नहीं है कि मेरा सोच बीमार है, सोच मात्र बीमार होता है, जैसे सारे विश्वास अंधविश्वास होते हैं उसी तरह सारे सोच बीमार होते हैं..| जो जानता है वो सोचता नहीं है, और जो सोचता है वो जानता नहीं है…! इसको ठीक से समझ लें, आँख वाला कभी प्रकाश को नहीं सोचता है, सिर्फ अंधे सोचते हैं प्रकाश के बारे में…लेकिन क्या आप सोचती हैं कि कोई अँधा प्रकश के बारे में सोच-सोच कर प्रकाश को जान लेगा…या वो जो कुछ भी प्रकाश के बारे में सोचेगा वो सही या गलत कुछ भी होगा ?? नहीं, कभी नहीं…वो जो कुछ भी सोचेगा प्रकाश के बारे में वो ‘बीमार’ होगा, बकवास होगा और प्रकाश के सत्य से कोसो दूर होगा…!! मैंने जो कुछ भी अपनी लेख में कहा था वो मेरी अंतर्दृष्टि थी न कि सोच विचार, लेकिन दिक्कत ये हैं कि अंधों से प्रकाश के बाबत जो भी कहा जायेगा उसको वो ‘पागलपन’ और बकवास या कविता ही लगेगा…!! सो मैं आपकी मज़बूरी समझ सकता हूँ…!! आप अकेली नहीं हैं जो मेरे बारे में ये सब ‘सोचती’ हैं…!!!
‘आपने स्वयं को ‘स्वयं ही’ महान् घोषित कर दिया’-……. जब भी कोई अपनी महानता की घोषणा करेगा वो ख़ुद ही करेगा, महानता परम-स्वतंत्रता है, दूसरे अगर मुझे महान बनाएंगे तो वो उसकी कीमत भी उसूलेंगे, और जो कुछ भी दिया जा सकता है उसे छिना भी जा सकता है…| किसी के द्वरा दी गयी महानता दो कौड़ी की होती है | जब आपको सिर दर्द होता है तो क्या दूसरा आपको बताता है कि तुमको सिर दर्द है या फिर आप ख़ुद ही इसकी घोषणा करती हैं..?? क्या आप सोचती हैं कि बुद्ध ने अपने बुद्धत्व की घोषणा लोगों से पूछ कर की थी…??? दूसरों के द्वारा दी गयी महानता हमेशा गुलामी लाती है, दूसरों की गुलामी…सो इससे बच के रहिएगा!!!
“जीवन में जानने और समझने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है!”… इसका अर्थ ये हुआ कि घरा हमेशा आधा-खाली और आधा-भरा रहता है..| “यह जान पड़ता है कि महानता की चोटी से कभी आपका परिचय नहीं हुआ”…. उन अर्थों में निश्चित ही नहीं हुआ जिन अर्थों में हम लोगों को महान कहते हैं…महानता अति साधारण बात, जीवन के प्रति सहज हो जाना महान हो जाना है.., महान होने का मतलब ये नहीं होता कि आप किसी से बड़े या कोई आप से छोटा है, महान होने का मतलब है कि आप वही हैं जो आप है, आपने से अन्यथा होने कि आकांशा या पागलपन आपके अंदर नहीं है…!! अगर गुलाब का फूल गुलाब का ही फूल है तो वो महान है, लेकिन यदि वो कमल का फूल बनने की कोशिश में लगा है तो वो पागल है…किसी और के जैसा बनना पागलपन है महानता नहीं, मेरी दृष्टि में ‘मैं दुनिया का पहला और आखिरी महान व्यक्ति हूँ’..!
“बुद्धिमान केवल उसी जगह प्रतिक्रिया देते हैं जहां उन्हें गंभीर सोच होने का अंदाजा हो”-…. गलती में हैं आप, गम्भीरता रोग है, और सारे सोच गम्भीर और रोगी होते हैं… दूसरी बात बुद्धिमान कभी प्रतिक्रिया ही नहीं देते हैं, प्रतिक्रिया सदा मुर्ख देता…बुद्धिमान व्यक्ति का रिमोट उसी के पास होता है कोई दूसरा बटन दबा कर उसके अंदर हलचंल पैदा नहीं कर सकता है…! इसको ऐसे समझें, मैं यहाँ जागरण पर जो कुछ भी कर रहा हूँ मैं अपनी मर्ज़ी से कर रहा हूँ, लोग मुझ से वही कह रहे हैं जो मैं उनसे सुनना चाहता हूँ, जब मुझे उनसे जो सुनना होता है मैं उनके उस बटन को दबा देता हूँ…!!! मैं तनिक भी इन सब चीज़ों को ले कर गम्भीर नहीं हूँ, ये सब खेल है मेरे लिए, और मैं धन्यवाद से भर जाता हूँ जब कोई मेरे इस खेल में मेरे साथ शामिल हो जाता है…जब कोई मेरा विरोध करता है तो मैं उसके प्रति अनुग्रह से भर जाता हूँ…क्योंकि उसकी वजह से मुझे आनंद आता है, मेरा बौद्धिक व्यायाम हो जाता है…!!! मैं आपका आभारी हूँ..!!
“सर्वप्रथम तो आपका ‘निर्लज्ज’ व्यक्तित्व ही हर तरफ जिराफ की तरह गर्दन ऊंची कर अपने उथलेपन का ढ़िंढ़ोरा पीट रहा है”….. लाज उनको होता है जो अपने प्रति हीनता से भरे होते है, जब हम ख़ुद को हीन समझते हैं तो हमें दूसरों से लाज आने लगती है..कि लोग क्या सोचेंगे…! मैं निश्चित ही निर्लज्ज हूँ, क्योंकि मुझे मज़ा आता जब लोग मेरे बारे में कुछ सोचते हैं…गलत या सही इसकी मैं परवाह नहीं करता, बस सोचो….जो लोग मेरे बारे में सही सोचते हैं मैं उनको डरपोक समझता हूँ… आपके लिए एक अच्छी खबर है ‘आप डरपोक नहीं हैं’ गुड.. आई लाइक इट!!
“काले कीचड़ में पत्थर फेंककर केवल अपने दामन पर”… आपका भ्रम जारी है… ये धारना चालबाजी की है, सिर्फ नपुंसक लोग, कमज़ोर लोग, कायर लोग कीचड़ से डरते हैं और बच बच के चलते हैं…बुद्ध ने अनुगुलीमाल नाम के कीचड़ में कंकर फेका था और उसको साफ़ कर दिया ..| ज़रा सोचिये अगर कोई चिकित्सक ये कहे कि मैं उसकी का इलाज़ करूँगा जो स्वस्थ है तो इस समाज का क्या हाल होगा…???
‘छोटे लोगों के मुंह नहीं लगते’ ….. मूर्खतापूर्ण बात है ये, कमज़ोर लोगों ने अपनी कमज़ोरी छिपाने के लिए ये कहावत बनाई होगी…कौन छोटा कौन बड़ा…??? छोटे बड़े की धारणा हमारी अज्ञानता का परिणाम है…!! We all are inter-being, we are one without two.
“‘बड़े व्यक्तित्व को तो फर्क पड़ेगा, बेकार की बात में उसका कीमती वक्त बर्बाद होगा” ….. उसके बड़प्पन में कहीं कोई कमी होगी इसीलिए फर्क पड़ेगा…जिसको बात करने का ढंग नहीं आता उसकी बाते बेकार चली जाती हैं…जिसको वक़्त का होश रहे वो काहे का बड़ा…?? याद कीजिये जीसस का वो वचन जब वो ये कहते हैं.., ‘There shall be time no longer.
“प्राणी ‘तुच्छ’ केवल अपनी ‘तुच्छ सोच’ से बनता है”-…. गलत शिक्षा-दीक्षा की शिकार हो गयी हैं आप, सारे सोच विचार मनुष्य को ‘तुच्छ’ बनाते हैं.. विचार हमेशा ‘उधार’ और ‘बासा’ होता है.. सोच-विचारा कभी भी मौलिक नहीं होते हैं…| हमारी बदकिस्मती ये है कि ‘हम हैं तो ख़ुदा लेकिन सोच-विचार के चक्कर में आ कर बाँदा बने बैठे हैं’…!! सारे सोच ‘तुच्छ’ होते हैं… अगर जीवन को जानना हो तो विचारों के पार जो हमारी साक्षी की सत्ता है हमे उसके प्रति होश से भरना पड़ता है…’ये कौन है आपके भीतर जो सोचता है..??, कौन है जो ये कहता है कि ये मेरा विचार है…???, ये ‘मेरा’ कहने वाला कौन है ??, इस पार ध्यान करे…!! शायद, उसकी झलक मिल जाये जो विचार नहीं है.., शरीर नहीं है…, भाव नहीं है…जो न तो जन्म लेता है…, न ही मरता है.., जो न तो महान है.. न ही निकृष्ट…, जो न तो ज्ञानी है, और न ही अज्ञानी है…जो न तो बड़ा है न ही छोटा, जो न तो स्त्री है न ही पुरुष है…, जिसका न तो कोई मान होता है , न ही अपमान…, तत्व मसि- ‘शिप्रा तुम वही हो’ ‘That which is’.!!!
“आपकी तुलना में मैं निरक्षर हूं” ….तुलना करने को कहा किसने तुम्हे…??, हम सब अतुलनीय हैं, तुम गलतफहमी में जी रही हो…!! ‘तुम इस अस्तित्व की अनुपम और अकेली कृति हो’.. ‘न तुम्हारे जैसा कभी कोई हुआ था, न कभी कोई होगा, तुम आखरी और पहली हो…!!’
“शायद या शायद कुछेक जो पढ़ी होंगी गिनकर नहीं पढ़ी.”…. हुम्म गणित कमज़ोर है तुम्हारा और यादाश्त भी, बादाम खाया करो..!!
“यह शायद इस मंच के अधिकांश बुद्धिजीवी समझते हैं”….. इस मंच पर समझदार तो कोई नहीं है, यहाँ मंदबुद्धियों की जमात है.., मूर्खों का जमघट है..!! ये मंच मुर्दाघर है..!! समझदार लोग तो बस यहाँ दो ही रह गए, एक ‘हम’ और एक ‘आप’ रह गए…!!
“‘इच्छा तो नहीं है लेकिन आखिरी दफा सोचा मूढ़ के सामने मैं भी थोड़ी देर के लिए मूढ़ बनकर उसे सम्मान दे दूं’.” ….. अपने इस कथन पर ध्यान करना, दो चीज़ तुम्हे अनुभव में आएगी, पहला कि तुम महात्मा जी की उस तोते की तरह हो जो ये रटता रहता है कि ‘शिकारी आएगा, दाना डालेग लोभ से उसमे फसना नहीं’ और ये गाते हुए शिकारी की जाल में फस जाता है और फिर भी गाना गता ही रहता है | और दूसरी बात जो तुम्हे समझ में आएगी वो है यूनान की एक कहावत, ‘आदमी एक ऐसा गधा है जो एक ही गड्ढे में दो बार गिरता है’.
“के अलावे भी दुनिया में कई अति महत्वपूर्ण कार्य हैं…” तुमरे चिंतन में कोई बुनियादी भूल है, कर्म कभी भी कर्ता से महान नहीं हो सकता है, तुम क्या करते हो से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि तुम क्या हो और कैसे करते है,,,क्या बोलते हो और क्या करते हो गौण है… महान आदमी महान काम नहीं करता है वो जो भी करता है वही महान है…हमारे होने का ढंग हमारे कर्म से ज्यादा महत्व्पूर्ण है…|
“अति व्यस्त वक्त में हर किसी के पास वक्त की कमी है….” …. किस बात की जल्दी है तुमको..?? समय अनंत है, अगर ठीक से समझो तो ‘समय’ जैसा कुछ होता ही नहीं है, समय व्याभारिक सच तो है लेकिन अस्तित्व में कोई समय नहीं है…हम सदा थे और सदा रहेंगे…यहाँ न कुछ आता है न जाता है, सब बस है… सिर्फ दुखी आदमी को समय का बोध होता है…जैसे ही हम शांत और आनंदित होते हैं समय समाप्त हो जाता है…हमें बोध ही उसी का होता है जो हमें दुःख देता है…!! विश्राम को उपलब्ध हो जाओ… व्यसतता विक्षिप्ता है…!!
“शायद आपको ‘प्रेम प्रदर्शन’ और ‘बल-प्रदर्शन’; ‘प्रेम-आग्रह’ और ‘दुराग्रह’ में फर्क नहीं पता..” …. सब लफबाजी है, कहीं कोई भेद नहीं है.., भेद भीतर से आता है, शब्द तो निर्दोष है..!!! गलत लोग शब्दों को गलत अर्थ दे देते हैं…! मुझे जो भी पता वो शब्दातीत है.., शब्द हमारा सब से बड़ा दुश्मन है, इसके चक्कर से बहार निकलो और, मेरे इस लेख में उसको पढ़ने की कोशिश करो जिसको शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है…दो शब्दों के बीच जो खली स्थान है उसे पढ़ो…!! “‘गूढ़-अर्थ’ को समझने की चेष्टा’”.. …. सारे अर्थ अनर्थ हैं…मन के खेल हैं…सब अर्थ ऊपर से थोपे होते हैं…निश्चेष्ट हो जागो, ‘Be still and know’ !!
“आपका पूरा ब्लॉग ध्यानपूर्वक पढ़ा नहीं था…हां, एक सरसरी निगाह दौड़ाई थी” …. किस बात की बेचैनी थी तुमको, ठीक से पढ़ लेती…, शब्द कहीं भागे तो नहीं जा रहे थे..?? हद करती हो कुछ का कुछ पढ़ लेती हो फिर मुझ से बहस करती हो…!!! जब जो करती हो उसे पुरे होश के साथ करो, परेशान चित का लक्षण है, सब कुछ हड़बड़ा के करना… “Be here and now’ !!!
“पागल कभी नहीं कहता कि वह पागल है. वह सबको पागल कहता है. मूर्ख हमेशा सबको बेवकूफ और खुद को बुद्धिमान कहता है.” …. तुम गलत स्कूल में शिक्षित हुई हो…., पागलपन परम-अवस्था है, जब कोई मुझे पागल कहता है तो मैं उसे अपना सौभाग्य समझता हूँ, पागल का अर्थ होता है जो मन के पार चला गया | ‘पागलपन’ प्यारा शब्द है, लोगों ने इसको गन्दा कर दिया है..!! मुर्ख होना एक कला है | तुम हैरान होओगी कि ‘आम तौर पर हम जिसको मुर्ख कहते हैं वो मुर्ख नहीं होता है’, वो भी होशियार होता है लेकिन औरों के तुलना में कुछ कम होता है…| प्राथना करो कि अस्तित्व तुमको मुर्ख बना दे, इस खोपड़ी के बोझ को कब तक ढोती रहोगी…??, माना कि खाली है, जयदा भारी नहीं है फिर भी अब इसको फेक दो और निर्बुद्धि हो जाओ…फिर सब जान जाओगी जो बुद्धिमान सर पटक पटक कर भी नहीं जान पता है…!!
“एक होती है ’बुद्धि’ और दूसरी होती है ‘दुष्ट बुद्धि’.” …. तुमको जीवन को खंडो में बांटने की बीमारी है… ‘बुद्धि और दुष्ट-बुद्धि’ एक ही सिक्के के दो पहलु हैं…जो बुद्धिमान है वो दुष्टबुद्धि होगा ही…और जो दुष्टबुद्धि है वो बुद्धिमान भी होगा…| दोनों सम्यक अवस्था नहीं है…दोनों से एक साथ मुक्त हो जाओ.. ‘Be freed from both’!!!
“”समझ तो तुम गए ही होगे!”…. मेरे समझ जाने से तुम्हारे जीवन में क्या फर्क पड़ जायेगा…?? मैं समझने और न समझने के चक्कर में पड़ता ही नहीं हूँ, जो है सो बस है.. ‘यथा भूतम्’ ‘Ah this is..!’
“शायद आपने मेरा जवाबी ब्लॉग ध्यान से नहीं पढ़ा”…. मुझे पढ़ने का एक ही ढंग आता है और हमेशा उसी ढंग से पढता हूँ | तुम क्या लिखती हो से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे लिए ये है कि तुम क्यों लिखती हो, और क्या लिखना चाहती हो, तुम कोई स्पेशल केस नहीं हो मेरे लिए, सारे मनुष्य की एक ही समस्या है, मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या ऊँची ऊँची फेक रही हो | इसीलिए ध्यान से पढ़ने और न पढ़ने का सवाल ही नहीं उठता है… तुम्हारी बीमारी एक है और मेरे पास एक ही दवाई है…सो तुम कोई भी बीमारी बताओ मैं दवाई वही दूंगा..सो निश्चित रहो, मैं हमेशा ध्यान से ही पढ़ता हूँ किसी और प्रकार से मुझे पढ़ना आता ही नहीं है..!!
“शायद उसे पढ़कर आपके दिमाग के अंदर भरे भूसे में आग लग गई है कि आप ऐसी बेतुकी बातें कर रहे हैं.”….. अगर मेरे पास दिमाग होता तो उसमे भूसा भी ज़रूर होता, लेकिन मज़ा ये है कि मेरे पास दिमाग है ही नहीं है, वर्षों पहले मैं ने उसमे ख़ुद आग लगा दिया था… वैसे अगर तुम मेरे दिमाग में आग लगाने की कोशिश कर रही थी तो मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ | तुम्हारा इरादा जो कुछ भी रहा हो, लेकिन तुम काम नेक कर रही थी…|
“भाई आपकी यह थीसिस क्या है”…. बहन मेरी कोई न तो थीसिस है और न ही एंटीथीसिस है, मेरे पास बस ‘सिंथीसिस’ है | तुम एक अति में चली गई हो, मैं तुम्हे बस बीच में लाने की कोशिश कर रहा हूँ…. तुम्हारी गगरी जो पूरा भर गया है उसे आधा खाली करने की कोशिश कर रहा हूँ…!!
“जब विचारों की बात आती है तो केवल ‘सही और गलत’ हो सकता है..’झूठ या सच’ नहीं!” …… विचार सिर्फ बकवास होता है और कुछ नहीं…, न तो कुछ सही होता है न ही कुछ गलत..|
“मैंने कल ही मान लिया था कि आप अंतर्यामी हैं”…… ‘मानने’ से काम नहीं चलेगा बच्ची, इतने हलके में तुम्हे नहीं छोडूंगा मैं…’जानना’ होगा तुम्हे.., अंधा अगर मान भी ले कि प्रकाश है तो क्या फर्क पड़ जायेगा उसकी ज़िन्दगी में…??? मानो मत जानो..!!
“यह आपकी किसी मानसिक अवस्था का आभास कराती है.” ये मेरे ‘अमनिये’ (No-mind) अवस्था का आभास कराती है…मन के पार की अवस्था..!!
“छोटी समझ में अक्सर बड़ी बातें समझ नहीं आतीं..कोई बात नहीं हमें आपकी अवस्था का भान है.” ….. तुम फिर ‘भान’ पर रुक रही हो… ‘भान’ नहीं ‘ज्ञान’ चाहिए…., तुम हमेशा कम से समझोता कर लेती हो, मैं तुम्हे पूरा आकाश दे रहा हूँ और तुम हो कि अपनी खिड़की को छोड़ने को तैयार ही नहीं हो..!!
“यह उम्मीद तो वाकई नहीं थी आपसे..” …. मेरे से उम्मीद लगाने को कहा किसने आपको शिप्रा जी, मैंने क्या आपके उम्मीदों पर खड़ा उतरने का ठेका ले रखा है..हद करती हैं आप भी…., Expectation brings nothing but frustration’|
“किस तरह समझाऊं कि मुझे आपसे तार्किक बातों और तर्कसंगत जवाबों की अपेक्षा नहीं है”…. तो क्या अपेक्षा है तुम्हारी, गाली दूँ..?? सम्राट के सामने आ कर भी ‘अठन्नी’ की भीख मांगती हो..?? हद दर्ज़े की गरीबी है आपकी.., अरे मांगना ही है तो कुछ ढंग की मांगो…, गाली-गलौज़ सुन कर क्या करोगी…???

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply