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बधाई हो, आपने आधी यात्रा तय कर ली, मंजिल करीब ही है…!! बहुत थोड़े से लोग हैं जो ख़ुद को बेवकूफ मानते हैं, मैं खुश हूँ कि आपने ख़ुद को बेवकूफ़ माना और नुस्का सिखने आ गये | निःसंदेह आप धन्यवाद के पात्र है | बुद्धिमान बनने का पहला शर्त यही है ‘ख़ुद की बेवकूफ़ी यानि अज्ञानता के के प्रति सचेत हो जाना’, ये जानना कि मैं नहीं जनता | लेकिन यहाँ सजग हो जाने की ज़रुरत है, अगर आप बगैर जाने मानने लगेंगे तो फिर आप अपने प्रति निंदा से भर जायेंगे, फिर स्वयं की निंदा पतन का कारण बन जायेगा | ये सिर्फ मान नहीं लेना है कि ‘मैं बेवकूफ़ हूँ’ इस बात का सम्यक बोध होना ज़रूरी है | कुछ लोग अपने आप को बेवकूफ़ सिर्फ इसलिए मानते हैं क्योंकि लोग उनके बारे में ऐसा सोचते हैं | अगर आपने ने किसी से सुन कर ख़ुद को बेवकूफ़ मान लिया है तो फिर यत्रा कभी भी पूरी नहीं हो पायेगी | आप अन्धकार में ही भटकते रह जायेंगे | ख़ुद को बेवकूफ़ मानना उधार जानकारी या फिर स्वयं की चालाकी नहीं बल्कि समझ होनी चाहिए, और समझ प्रयास से आता है, अनुभव से आता है, लोगों से सुन कर या किताब पढ़ कर नहीं |
अब प्रश्न ये उठता है कि क्या करें, किस दिशा में प्रयास करें, कैसे जाने कि मैं नहीं जनता हूँ..??? आसान है, अगर आप ये मानते हैं कि ‘मैं बेवकूफ़ हूँ/मैं बुद्धिमान हूँ’ तो जाने कि आप नहीं जानते हैं | जानकारी के आते ही मान्यता समाप्त हो जाती है, फिर किसी से ये कहना नहीं पड़ता कि ‘मैं बेवकूफ़ हूँ या फिर मैं बुद्धिमान हूँ’ | आप जो सच में ही हैं उसको किसी को बतलाने या जतलाने का कोई मतलब नहीं रह जाता | जब हम किसी से ये कहते हैं कि ‘मैं बुद्धिमान हूँ’ तो इसमें दो बाते छिपी होती है, एक आप उस व्यक्ति की सहमती चाहते हैं, आप चाहते हैं कि वो आपको समझदार माने, दूसरी बात, आप क्यों चाहते हैं कि सामने वाला आपको समझदार माने..??? साफ़ है, आप अपनी समझदारी को ले कर ख़ुद आश्वस्त नहीं हैं, गहरे में कहीं आप संदेह से भरे हैं | इस को ठीक से समझें , हमे जीस चीज़ का ठीक ठीक बोध होता है हम कभी भी उस को लेकर दूसरों की राय जानने की कोशिश नहीं करते हैं | हम दूसरों पर तभी आश्रित होते हैं जब ख़ुद अंधकार में होते हैं |तथाकथिक बेवकूफ़ परोक्ष रूप से दूसरों पर आश्रित होता है जबकि तथाकथित समझदार अपरोक्ष रूप से दूसरों पर आश्रित होता है, लेकिन दोनों का सरोकार दूसरों से होता है, जब तक दूसरों की मोहर न लग जाये उनकों अपनी मान्यता/जानकारी पर भरोसा नहीं आता |
अगर हमे लगता है कि सीधे रस्ते से दूसरों की राय नहीं जानी जा सकती है तो हम पीछे के रस्ते से कोशिश करने लगते है | जैसे जब कोई ये कहता है कि ‘मैं बेवकूफ़ हूँ’ तो वो परोक्ष रूप से लोगों का मत जानना चाह रहा है | वो ये सुनना चाह रहा है कि नहीं तुम बेवकूफ़ नहीं हो, तुम तो समझदार हो | मन के इस तरह की चालबाजियों से बचे, इन होशियारों के चक्कर में आप कभी भी सच में बुद्धिमान नहीं हो पाएंगे, लोग आपको समझदार मानते हैं या बेवकूफ़ इस से आपके भीतर कुछ फ़र्क नहीं पड़ने वाला हाँ बस ये होगा की आपकी जड़ता मज़बूत हो जाएगी |
आइए दो तीन नुस्कों पर विचार करते हैं …. पहले तो ये जाने कि ‘मैं नहीं जनता हूँ’, ये जानने के लिए क्या करना है और कैसे करना है | सहज है, थोड़ी सजगता और आप इस तथ्य के प्रति जागरूक हो जायेंगे… सब से पहले अपने अंदर चल रहे विचरों के प्रति सजग हो जाएँ…सतत ये जानने का प्रयास करें कि आप के अंदर क्या चल रहा है, आते जाते विचारों को देखें, उनमे खोए नहीं, विचारों से उलझे नहीं, उनका विश्लेषण नहीं करें, बस देखे, उनके प्रति होश से भर जाएँ…| दिन में जब भी याद आये अपने मन में चल रहे विचारों के रेल के प्रति सजग हो जाएँ…जो भी चल रहा है उसे चलने दे, कोई व्याख्या न करें, उनके प्रति कोई धारणा न बनाये, जो भी है जैसा भी है उसे बस चलने दे, आप शांत हो कर उसे देखते रहे, जो रवैया हम दुनियां में घट घटनाओं के प्रति अपनाते हैं वही विचारों से अपनाना है, बस चुप चाप उनको देखना है, ऐसे जैसे उनसे हमारा कुछ लेना देना नहीं है, जैसे हम कोई फ़िल्म देख रहे हैं परदे पर | ध्यान रहे इस फ़िल्म में न तो देखते वक्त रोना है, न ही खुश होना है, न ही ताली बजानी है, न ही कोई समीक्षा लिखनी है |
वक्त हो तो आंखे बंद कर के विचारों को देखे, शरीर को किसी भी मुद्रा में सहज छोड़ दें, एक बार आरामदायक मुद्रा में लेट या बैठ जाने के बाद कुछ भी हो शरीर को हिलाए नहीं, विचारों के साथ साथ शरीर में चल रहे हलन चलन और संवेदनाओं के प्रति भी होश से भर जाएँ, और जो भी हो रहा हो उसे बस देखते रहें| लेकिन यदि कभी पुरानी आदतवश आप विचारों से उलझ भी जाते हैं तो कोई बात नहीं, ग्लानि अनुभव करने की कोई ज़रुरत नहीं है, सहज भाव से अपने भूल को स्वीकार लें और फिर सजग हो जाएँ… अफ़सोस करने में वक्त बर्बाद नहीं करना है |
जल्दी है आपको अपने मन के बारे में बहुत सी बाते समझ में आनी शुरू हो जाएंगी | और जब आप अपने मन को समझने लगेंगे तो औरों के मन को भी आप समझने लगेंगे…कई गूढ़ रहस्यों का पता चलने लगेगा आपको, वो सब जो किसी भी किताब को पढ़ कर या किसी को भी सुन कर नहीं समझा जा सकता है वो समझ में आने लगेगा |
अगर सिर्फ बुद्धिमान ही बनना है तो मन के प्रति होश से भरें, चुनावरहित होश, लेकिन अगर सुंदर होना है तो शरीर के प्रति होश साधें, शरीर की जितनी भी क्रियाएं आप यंत्रवत करते हैं उसे होश से भर कर करने लगे, शरीक को देखें, उसे अनुभव करे, वो सब काम जो जल्दबाजी में करते हैं उसे थोड़ा धीरे करें | अगर आप प्रेमपूर्ण होना चाहते हैं तो भावों के प्रति होश साधें, क्रोध, घृणा, प्रेम, लोभ, भूख, प्यास, काम इन सब के प्रति सजग हो जाएँ, किसी भी प्रकार का दखल न दे बस जो हो रहा है उसे जानते रहें, उसके प्रति साक्षी रहे | और तीनों एक साथ चाहते हैं, बुद्धिमान भी होना है, सुंदर भी दिखना है और प्रेमपूर्ण भी होना है तो मन, शरीर और भाव तीनो के प्रीति एक साथ भी जागरूक हुआ जा सकता है | तीनों में से एक भी अगर सध गया तो बांकी दो आसानी से सध जायेगा | सूत्र एक ही ‘होश से भरना’ |
अगर सिर्फ जानकार ही बने रहना हैं कोई अनुभव नहीं चाहिए तो मेरे लेख को दो तीन बार पढ़ लीजिए और लोगों को उपदेश देना शुरू कर दीजिए | ये सबसे आसान काम है, इसके लिए कुछ करने की ज़रुरत नहीं है | अगर दो तीन बार पढने की झंझट से बचना चाहते हैं तो कॉपी पेस्ट करके फैलाना शुरू कर दीजिए |
(नोट- ऊपर बताई सभी विधियों पर मैंने काम किया, सभी विधियाँ प्रमाणिक हैं, 2008 से मैं साक्षी की साधना करता आ रहा हूँ | बहुत सारी बाते हैं जिसकी चर्चा मैं ने नहीं की है, लेकिन जितनी भी जानकारी शेयर की गयी है शुरुआत करने के लिए पर्याप्त है | ये विधियाँ आपको बुद्धिमान बनायेंगी न की जानकार, इस बुद्धिमानी से आपको कोई आर्थिक या सामाजिक फायदा होगा या फिर नोबेल प्राइज मिल जायेगा ऐसा मेरा दावा नहीं है | इन विधियों के कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हैं, ये एक अर्थों में आपको पागल कर देगा)
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