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डॉ. ज़ाकिर नायक रजनीश (ओशो) के शिष्य हैं

Wise Man's Folly!
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वैसे तो टेलीविजन के माध्यम से प्रसिद्ध होने वाले बहुत से ज्ञान विक्रेता हैं, सैकड़ों बाबा हैं, गुरु हैं लेकिन डॉ. ज़ाकिर नायक सब से अनूठे हैं, जिस सूक्ष्म और एसोटेरिक तरीके से वो अपने सदगुरु ओशो के कामों को आगे बढ़ा रहे हैं वो वाकई सराहनीय है | मुझे याद है अपने एक इंटरव्यू में ओशो की एक शिष्या माँ धर्म ज्योति कह रहीं थी कि सद्गुरु का काम करने और करवाने का ढंग अनूठा होता है, कौन किस तरह से उनके लिए काम कर रहा होता है किसी को पता नहीं चलता | आज जब डॉ. नायक ज़ाकिर नायक को ओशो के संदेश को दुनियां के कोने-कोने में पहुंचाते देखता हूँ तो हृदय पुलकित हो उठता है | डॉ. ज़ाकिर नायक ओशो के गुप्त शिष्य हैं, उनके इनर सर्कल का हिस्सा हैं| वो ओशो के लिए ऐसे ही काम करते हैं जैसे हिटलर तिब्बत के बुद्धिष्ट एसोटेरिक ग्रुप के लिए काम करता था |
जब जब ओशो से इस्लाम पर बोलने के लिए कहा गया उन्होंने टाल दिया, उन्हें पता था कि इस्लाम पर सीधा चोट नहीं किया जा सकता है | उन्होंने कई बार इस्लाम के पंडित यानि उलेमाओं से बात करने की कोशिश भी की लेकिन कभी भी सफ़लता हाथ नहीं लगी… अपने रायपुर के दिनों में ओशो ने एक बार एक मुस्लिम स्कालर से बात करने के लिए ख़ुद को इस्लामिक हुलिए में ढाला, मतलब दाढ़ी बढ़ा के मूंछ कटवा ली, महीनो मेहनत कर के उर्दू सीखी, यहाँ तक कि ख़तना भी करवाया लेकिन फिर भी ऐन मौके पर उनको पहचान लिया गया और मौलाना ने उनसे इस्लाम से जुड़े किसी भी मुद्दे पर बात करने से साफ़ इनकार कर दिया |
इस्लाम के अनुसार वो लोग जो इस्लाम को नहीं मानते हैं यानि जो मुसलमान नहीं हैं वो काफ़िर है, काफ़िर शब्द ‘कुफ्र’ से बना है कुफ़्र का मतलब होता है पाप, सो काफ़िर मतलब पापी | इस्लाम के हिसाब से जो लोग मुसलमान नहीं हैं वो पापी हैं और मुसलमान फ़क़ीर पापियों से कोई वाद-विवाद नहीं करते हैं | ओशो ने अपने जीवन काल में सैकड़ों लोगों पर बोला, करीब करीब सभी प्रमुख धर्मों के पवित्र किताबों पर बोला लेकिन उन्होंने ‘क़ुरान’ पर नहीं बोला, इसके पीछे की वजह ये थी कि मुस्लमान क़ुरान में किसी भी प्रकार का काट-छांट पसंद नहीं करते हैं | उनके अनुसार क़ुरान ईश्वर की आख़री किताब है |
ऐसे नाज़ुक हालात में ओशो के लिए एक ही उपाय बचा था परोक्ष रूप से इस्लाम पर हमला करना | ओशो अपने इस प्रयास में काफ़ी सफ़ल रहे, आज ऐसा कोई भी इस्लामिक देश नहीं जहाँ लोग चोरी-छिपे ओशो को नहीं पढ़ते या सुनते हैं | आज पाकिस्तान में हजारों ओशो प्रेमी हैं, सैकड़ों लोगों ने सन्यास भी ले रखा है | वहां पर ओशो सन्यासी गुत्प रूप से एक दुसरे से मिलते हैं, और पाकिस्तान के बहार दुसरे देशों में स्थित ओशो के ध्यान केन्द्रों में जा कर ध्यान सीखते हैं | मेरे एक पाकिस्तानी मित्र हैं जो ‘फिटनेस फॉर ऑल’ नाम से एक ध्यान केंद्र चलाते हैं, और ओशो के द्वारा बातये गये ध्यान विधियों की साधना करते हैं | कुछ लोगों ने ओशों की किताबों को उर्दू में ट्रांसलेट भी किया है |
मैं ने ऊपर कहा कि डॉ. ज़ाकिर नायक अनूठे हैं, जिस चतुराई से वो अपने काम को अंजाम दे रहे अगर आप समझे तो आप भी उनके अनूठेपन से सहमत हो जायेंगे…. सब से पहले मैं आपको उनके व्यक्तित्व के प्रतक्ष्य और अप्रतक्ष्य पहलु से वाकिफ़ कराता हूँ | उनके वेबसाइट irf.net के अनुसार डॉ. नायक कम्पेरेटिव रिलिजन के स्कालर हैं और प्रोफेशन से डॉक्टर हैं | उनका काम देश दुनियां में जा कर लोगों को इस्लाम के बारे में अवगत करना है, मतलब इस्लाम का आधुनिककरण करना हैं | ये वही काम है जो ओशो ने किया था दुसरे धर्मों के साथ, शास्त्रों में लिखी सभी बोतों को उन्होंने एक अलग अर्थ दे दिया, ऐसा अर्थ जो आज के विचारशील लोगों को समझ में आये और धर्म आउट-ऑफ़-डेट नहीं लगे | ठीक यही काम डॉ. नायक आज इस्लाम के साथ कर रहे हैं मतलब बोतल पुरानी शराब नई |
आप अगर डॉ. नायक के वेबसाइट पर इस्लाम के बारे में पढेंगे तो आप पाएंगे कि वहां उन्होंने ओशो का ज़िक्र किया है, परोक्ष रूप से उन्होंने ओशो की निंदा की है लेकिन जो लोग जीवन के रहस्य को जानते हैं और जिन्होंने ओशो को थोड़ा बहुत समझा है वो जानते हैं कि निंदा तो बस एक बहाना है उदेश्य तो अपने सद्गुरु का ज़िक्र करना है | जिस ख़ूबसूरती से उन्होंने ओशो का विरोध किया वो कोई परम भक्त ही कर सकता है, गहन प्रेम चाहिए निंदा करने के लिए | उनके ओशो के विरोध में कहे गये शब्दों में कहीं भी छिछलापन नहीं है, उन्होंने क़ुरान के परम वचनों से ओशो की तुलना की है | ओशो ने हमेशा कहा है “दो लोग मेरे अपने हैं, एक जो मेरी प्रशंसा करते हैं दुसरे जो मेरी निंदा करते हैं |, निंदा करने वाला ज्यादा दिन बच नहीं सकता वो जल्दी ही मेरे प्रेम पड़ने वला है, दूसरी बात मेरे विरोध में बोल कर तुम बुद्धिजीविओं को जगा रहे हो, बुद्धिमान व्यक्ति ये ज़रूर सोचेगा कि जिसकी इतनी निंदा की जा रही है कुछ तो बात होगी उस में, चलो चल कर देखते हैं, और एक बार तुम मेरे पास आए कि फसे, सत्य तुम्हे सम्मोहित कर लेगा” सोचने वाली बात ये है कि इतनी बड़ी दुनियां में डॉ. ज़ाकिर नायक ने इस्लाम को समझाने के लिए ओशो को ही क्यों चुना…??
यहाँ कुछ भी अकारण नहीं होता है, सब के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है, कुछ भी अहेतुक नहीं होता | जिसको हम मजाक कहते हैं मनसविद कहते हैं वस्तुतः वो मज़ाक नहीं होता है बस सच को कहने का अलग ठंग होता है, वो सच जिसे सीधा कहने पर गहन चोट पहुँचत सकती है किसी को हम उसे मजाक के रूप में हल्का कर के कह देते हैं | हमारा चलना, बोलना, उठाना, बैठा यहाँ तक कि पलक झपकना भी हमारे अंतर मन की ख़बर दे रहा होता है | कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी ये सोचेगा कि इस्लाम की व्याख्या में ओशो का क्या काम, ज़रूर कोई गूढ़ उदेश्य है |डॉ. नायक ओशो की निंदा करके लोगों को ओशो के प्रति उत्सुक कर रहे हैं, गुप्त रूप से वे लोगों को कुछ इशारा कर रहे हैं | ये उनका लोगों में प्रीति अपार करुणा और अपने सद्गुरु के प्रति अपरिसीम प्रेम नहीं तो और क्या है |
मैं यहाँ मुंबई में अपने जिस मित्र के साथ रहता हूँ वो मुसलमान हैं जब मैं उसके साथ रहने आया तो एक दिन उसके बेड के नीचे ओशो की एक किताब देखी, मैं ने उत्सुकतावश उस से पूछ लिया तुम इनको क्यों पढ़ते हो, तो कहने लगा किसी को बताना मत मुझे इनकी बातें अच्छी लगती है, मैं काफ़ी दिन से इनको पढ़ता आ रह हूँ, और अब सन्यास लेना चाहता हूँ | उसी बात-चीत के दौरान मुझे ये भी पता चला कि डॉ. ज़ाकिर नायक से उसने पहली बार ओशो के बारे में सुना था | मज़े की बात ये है कि मैं ने पहली बार डॉ. ज़ाकिर नायक का नाम अपने उसी मित्र के मुंह से सुना था | फिर मैं ने अपने कुछ एसोटेरिक ग्रुप के मित्रों से डॉ जाकिर नायक का नाम सुना,पता चला कि ये महोदय तो बोधिसत्व है, जो गुप्त रूप से ओशो और बुद्ध के संदेशों को पूरी दुनियां में प्रसारित कर रहें हैं | सच में बुद्ध पुरुषों का लोगों को जगाने का ढंग बिल्कुल अनूठा होता है |
(* एसोटेरिक ग्रुप/ मिस्टरी स्कूल – ऐसा ग्रुप या स्कूल होता है जिसमे लोग गुप्त रूप से जीवन के रहस्यों पर काम कर रहे होते हैं, आम लोगों को इनके बारे में कोई ख़बर नहीं होती है, कोई अगर सत्य को जानने में सच में उत्सुक हो जाये तो ये लोग उसे ख़ुद ढूढ़ लेते हैं अन्यथा इनका सारा काम गुप्तरूप से चल रहा होता है | सम्राट अशोक ने एक गुप्त सर्कल बनाया था जो आज भी काम करता है | कहा जाता है कि हिटलर उन्ही के इशारों पर काम करता था, बाद में हिटलर ने अपनी मर्ज़ी चलानी शुरू कर दी जिसकी वजह से उसको मदद मिलनी बंद हो गयी और फिर उसके बाद वो हारता ही चला गया… उसके झंडे पर बना उल्टा स्वास्तिक एक एसोटेरिक चिन्ह था जो उसे तिब्बत से मिला था |)

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