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ग़लत नहीं हैं आशाराम बापू

Wise Man's Folly!
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पूजनीय श्री आशा राम जी बापू ग़लत नहीं हैं, उनकी साधुता में कोई कमी नहीं है | वो हमारे देश के एक गरिमापूर्ण और भगवत्ता को उपलब्ध संत हैं | ज़रुरत है कि हम उनको अख़बार, न्यूज़ चैनल, और सोशियल मिडीया के अन्य माध्यमों से देखना बंद करें | संतों को कभी भी उनके कृत्यों से न तो जाना जा सकता है और न ही उनके शब्दों से उनको समझा जा सकता है | हम या तो शब्द समझते हैं या फिर कर्म, इस दो के पार की जो अवस्था है वो कभी भी हमारे समझ में नहीं आती है, और इसीलिए हम से हमेशा,निरपवाद रूप से भूल हो जाती है |
संतत्व एक बहुत गहरी और भीतरी घटना हैं, यह एक ऐसी समप्रदा है जिसे एक बार पाने के बाद खोया नहीं जा सकता है | संत पुरुष अपने अच्छे कर्मों और सुमधुर शोब्दों की वजह से संत नहीं होते हैं, वो संत होते हैं इसीलिए उनके कर्म और शब्द सुंदर होते हैं | और यह ज़रूरी तो नहीं कि संत पुरुष के शब्द और कृत्य हमें सदा ही प्रीतिकर लगे…!! आज जब लोगों को आशा राम के खिलाफ़ बोलते सुनता हूँ तो बहुत निराशा महसूस होती है, ऐसा लगता है ये लोग जैसे किसी बुरी ख़बर का इंतज़ार कर रहे थे, इस ताक में बैठे हुए थे कि कब कोई मसालेदार ख़बर मिले…!!
अगर आशा राम सच में ही संत है तो हमारी निंदा से उनका संतत्व नष्ट नहीं हो जायेगा, उनकी साधुता उनको लोगों से खैरात में नहीं मिली थी जो लोग उन से छीन लेंगे | उनकी निंदा करने से बस एक ही बात घटेगी वो ये कि हमारा रावणत्व बहार आ जायेगा | आज जिसको देखो वो बड़ा रस ले के उनकी निंदा कर रहा है, हमारा ये कृत उनका तो कुछ नहीं बिगाड़ रहा लेकिन हमारी रुग्ण चित को उजागर ज़रूर कर रहा है | ऐसा लग रहा जैसे किसी मज़बूरी में आ कर हम उनकी पूजा कर रहे थे |
स्वस्थ मनुष्य अपने स्वभाव से पुजारी होता है, वो किसी के प्रभाव में आकर या कसी मज़बूरी, लोभ या फिर भयवश किसी की पूजा नहीं करता है | बड़े आश्चर्य की बात है कि जो लोग कल तक उनका पैर दबाते थे आज वही लोग उनका गला दबाने को तैयार है, प्रतीत होता है इनका पैर दबाना एक दिन गला दबाने की तैयारी मात्र थी | चलो एक मिनट के लिए अगर ये भी मान ले कि आशा राम पाखंडी हैं, तो क्या निंदा करने से वो संत हो जायेंगे….???? क्या उनका संतत्व हमारी प्रशंसा, पूजा और निंदा पर निर्भर है…??? और क्या हम किसी की सिर्फ इसलिए पूजा करते हैं कि वो अच्छा, चमत्कारी और महिमा पूर्ण हैं…??? अगर ऐसा है तो फिर हमारा अपना क्या है…??? हमारी अपनी कोई आत्मा है कि नहीं..?? अच्छे को अच्छा कहना बड़ा सरल है, जो पूजने योग्य है उसकी पूजा तो कोई भी कर ले, परमात्मा के सामने सर झुकाना नहीं पड़ता है सर झुक जाता है, मज़ा तो तब है जब कोई पत्थर के सामने भी सर झुका दे…!!
सवाल आशा राम के चरित्र का नहीं है सवाल हमारे और आपके चरित्र का है, आशा राम तो इके-दुके हैं, हम लाखों में हैं बल्कि अरबों में हैं… क्या एक आदमी के चारित्रिक पतन से हम सब का पतन हो गया ???? मेरे लिए आशा राम उतने महत्पूर्ण नहीं हैं जितना कि इस देश की 100 कड़ोड की आबादी, एक आशाराम के सही या गलत होने से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता, सवाल है अरबों लगों की मानसिकता का, ऐसा लगता है जैसे बुनियादी रूप से हम किसी मानसिक रोग से पीड़ित हैं | मुझे डर है कि जो लगो आज आशाराम के खिलाफ़ है वो कल बुद्ध, महावीर, कृष्ण, जीसस और मोहम्मद के खिलाफ़ भी आवज़ उठाएंगे…| हमारा संतों को देखने और समझने का तरीका ही गलत है…| ध्यान रहे एक बुद्ध की आड़ में अगर सौ बुद्धुओं को भी पूजना पड़े तो कोई हर्ज़ नहीं है, लेकिन दो चार दस बुद्धुओं के चक्कर में आकर अगर हम बुद्धों के प्रति समादर खो दे तो ये बहुत बड़ा नुक्सान होगा |
परमात्मा से प्राथना करता हूँ कि मंदबुद्धि लोगों को थोड़ी सद्बुद्धि दे..!!
आमीन !!!

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