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“जो बेपनाह उदास हो, पर हिज्र का न गिला करे….बढे उसका गम तो करार खो दे वो मेरे गम के ख्याल से,उठे हाथ अपने लिए तो फ़िर भी, मेर लिए ही दुआ करे.”
कितनी साधारण सी मांग है दिल की…”मेरे दर्द की जो दवा करे…..” कौन है वो जो मेरे दर्द की दवा कर सकता है…..? वो कौन है जो मेरे लिए दुआ कर सकता है……, दिल का रोग तो साधारण है…लेकिन चिकित्सक का मिलना मुश्किल प्रतीत होता है…..! यहाँ सब बीमार हीं हैं….जो ख़ुद दुखी है वो क्या दुसरे के दुखों को दूर करेगा…..यहाँ तो “blind leading the blind” …..!
जो ख़ुद बीमार है वो क्या मेरे लिए दुआ करेगा…..!
“कभी तय करे युही सोच सोच, न वो फिराक के फासल, मेरे पीछे आके दबे दबे, मेरी आँख मूँद हँसा करे…..” ये रोने वालों की बस्ती में कौन मेरी आँखों को मूंद कर हँसेगा…..!
“मेरी चाहते मेरी कुर्बते, जिसे याद आयें कदम कदम,वो सबसे छुपके लिबास सब,में लिपट के आह बुक करे……” प्रेम सभी बिमारिओं का इक मात्र इलाज़ है….
“ये किस्स अजीब-ओगरीब है,ये मोहब्बतों के नसीब है, मुझसे कैसे ख़ुद से जुदा करे,उसे कुछ बताओ की क्या करे…” “मेरे दर्द की जो दवा करे कोई ऐसा शख्स हुआ करे….”
इब्न-ऐ-मरियम हुआ करे कोई. मेरे दुःख की दावा करे कोई …
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