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‘अथातो प्रेम जिज्ञासा’- Now an enquiry into ‘Love’

Wise Man's Folly!
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“इस पार, प्रिये, मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा…!” वच्चन साहब के इन शब्दों मे अज्ञात का भय ‘Fear of unknown’ साफ झलकता है……, मन/मनुष्य सदा से प्रेम, ध्यान, नींद और मृत्यु से भयभीत रहा है……और ये चार चीजें unknown ही नहीं unknowable भी है….!
जीवन को तीन खंडो मे बाँटा जा सकता है……ज्ञात(known), अज्ञात(unknown) और अज्ञेय(unknowable)…कुछ चीज़ों को हम जानते हैं…..बहुत कुछ हम नहीं जानते है….लेकिन उन्हे जाना जा सकता है….आज न कल हम उन्हे जान लेंगे….पर कुछ चीज़े ज्ञानातीत है जिन्हे as a knower कभी नहीं जाना जा सकता है……We know what we know, we know what we don’t know but we never know or don’t know that which cannot be known, so neither we know love nor we don’t know…. Hence, an enquiry into ‘………..’ becomes possible….. हमे खाली स्थान छोड़ना ही होगा…..क्योंकि नाम के साथ ज्ञात का बोध जुड़ा हुआ है…….इसलिए‘I want it to be an enquiry only…… plane enquiry……..not into something or anything! हमे सभी मनयताओ को छोड़ देना होगा…. because we are not here to polish our knowledge….. we don’t know what we are going to stumble upon…….so before we plunge into it, we have to get rid of all that we know……and whatever we know is not much its just a four letter word…….throw it…!
DSC07622 Mystery hole
Now an enquiry into ‘…………’ अथातो ‘……..’ जिज्ञासा…….!
(Note- I will still be using word ‘love/प्रेम’ but take it for ‘………’)
यदि कोई कहता है कि मैं सो रहा हूँ तो वो गलत कह रहा है…..क्योंकि ‘मैं’ के रहते सोना हो ही नहीं सकता…..नींद और ‘मैं’ आपस में कभी नहीं मिलते है, उनका मिलन उतना ही असंभव है जितना अंधकार का प्रकाश से मिलना………और ठीक यही बात प्रेम, ध्यान और मृत्यु के साथ भी लागू होता है……जब कोई कहता है कि ‘मैं प्रेम करता हूँ’ तो वो झूठ बोल रहा है…..क्योकि प्रेमी के रहते प्रेम संभव नहीं है….यह ऐसे ही है जैसे कोई कहे ‘मैं मर गया हूँ’ जब तक कोई इतना कहने को ज़िंदा है कि ‘मैं मर गया हूँ’ तब तक वो मरा नहीं है……! इसलिए अब तक प्रेम के बारे मे जो कुछ भी कहा या सुना गया है वो सब झूठ व बकवास है…..!
पीछे के आलेखों मे मैंने ईश्वर की चर्चा की थी…..और प्रश्न उठाया था कि ‘ईश्वर यानि क्या….?’ कुछ लोगों ने इस पर अपना मंतव्य भी दिया लेकिन वो ऐसे ही था जैसे कोई अपने मृत्यु का अनुभव बताए…..!
अगर किसी को ‘प्रेम’ को जानना हो तो उसे नींद को जानने से शुरुआत करनी चाहिए…..क्योंकि नींद रोज़ व सबके साथ घटने वाली घटना है……इसे शुरुआत करना उचित रहेगा……!
अब अह्म प्रश्न ये उठता है कि हम नींद को जाने कैसे…..क्योंकि ‘जानने वाले’ के रहते तो इसे ‘जाना’ नहीं जा सकता है……और बाहर से नींद के ‘बारे’ में जो कुछ भी जाना जाएगा वो नींद के ‘बारे’ में जानना होगा न कि नींद को जानना, और नींद के बारे में जानना ऐसे ही है जैसे कोई अंधा प्रकाश के ‘बारे’ में जान ले but knowing ‘about’ light is not ‘LIGHT’…
Here begins the mystery……….हा…हा…हा…ही….ही….ही….हाँ…हाँ…हाँ………

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