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Lets meditate upon this सूफी story…!
“मरियम के बेटे ईसा एक गाँव से गुजर रहे थे। उन्होने देखा कि कुछ लोग राह के किनारे
एक दीवाल पर बहुत संतापग्रस्त होकर मुँह लटकाए हुए बैठे हैं।
ईसा ने उनसे पूछा: ‘यह हालत कैसे हुई तुम्हारी ?’
उन्होने कहा: ‘नरक के भय से हम ऐसे हो रहें हैं।’
थोड़ा आगे बढ़ने पर ईसा ने कुछ और लोगों को देखा, जो राह के किनारे तरह-तरह के
आसनों और मुद्राओं मे बैठे हैं। और वे भी बहुत उदास हैं।’
ईसा ने उनसे भी पूछा: ‘तुम्हारी तकलीफ क्या है ?’
उन्होने कहा: ‘स्वर्ग की आकांक्षा ने हमें ऐसा बना दिया है।’
उसी गाँव में ईसा और आगे बढ़े; फिर कुछ लोग उन्हे मिले। उन्हें देखकर लगा कि जीवन
में उन्होंने बहुत-कुछ झेला है; लेकिन वे आनंद-मग्न है ।
पुछने पर उन्होंने बताया: ‘हमने हकीकत देख ली; इसीलिए और मंजिलें भूल गई।’ ”
क्रमशः
‘भाई, इस सूफी कहानी का अभिप्राय क्या है…..’, ‘पहले इस पर ध्यान करो अभिप्राय बाद में पूछना’
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“रे मन गाफिल गफलत मत कर”
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Look at the absurdity of Sadhana ji’s mind….!
अभी ‘ReEvaluation’ ब्लॉग की लेखिका साधना जी ने एक बड़ा ही अजीबो-गरीब लेख लिखा ‘आत्म-साक्षात्कार….’ इस लेख की अनर्थकता समझने जैसी है, क्योकि इससे हमे पता चलेगा कि एक बेहोश आदमी का दिमाग कैसे काम करता है………..इस लेख में एक भी वचन संगत नहीं है……….
एक तरफ इस लेख कि लेखिका उद्घोषणा करतीं हैं कि, “अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुना है कि मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानता हूँ / जानती हूँ ….. ये कैसे संभव है….?
अगर किसी ने आत्म साक्षात्कार किया होगा तो वह व्यक्ति ऐसा कभी नहीं बोलेगा!! हम खुद को ही नहीं जानते….. किसी दूसरे को जानना बहुत मुश्किल है…. असंभव है…. !!”
और दूसरी तरफ ये मेरे बारे में क्या वक्तव्य देतीं हैं ये भी पढ़िए…..”संदीप जी आपके लेख और कमेंट्स पढ़ कर लगता है आप बुद्ध हो चुके हैं…..”………. अब ये तो हद दर्जे की वेवकूफी हो गई…….एक तरफ इनका कहना है कि दूसरों को नहीं जाना जा सकता है…..अगर दूसरों को नहीं जाना जा सकता है…..तो फिर इनको ये कैसे पता चला कि मैं बुद्ध हूँ….?????? और ये भी सोचने वाली बात हैं…..अगर इनकी ये बात इतनी ही सच है तो फिर ये किसी और के ये कहने पर कि ये दुखवादी हैं…..ये आत्म-साक्षात्कार क्यों करने लगीं……???….अरे किसी और ने ही कहा था न…..दूसरों की बात पर भी क्या भरोसा करना …..यहाँ कौन किसको जान सकता है…….
एक और बात जो कि मैं जानना चाहता हूँ….चूंकि इनहोने अब आत्म-साक्षात्कार कर लिया है….इनता तो तय हो गया कि अब ये आत्मा नहीं हैं…..क्योंकि इन्ही के अनुसार,,,”“साक्षात्कार” मतलब दो व्यक्तियों के बीच प्रश्न और उत्तर “……..it means now two…..’seer and seen’…..? And if there are tow, seer and seen, then third is bound to be there…..because third is the by-product of these to….so now there are there, seer(द्रष्टा) seen(दृश्य) and seeing(देखना)…………मज़ेदार……! Now, can she tell me…what and where she is….?????
एक और मजेदार बात है, जब मैंने इनको इनके बेहोशी से अवगत कराया तो ये फिर से आत्म-साक्षात्कार करने के बजाय मुझ पर तिलमिला गयीं और बेहोशी मे कुछ से कुछ अनाप-सनाप बकने लगीं…….पहले आप मेरे इनके लेख पर किए गए कमेंट को पढ़िए फिर इनहोने बोखला कर मुझे क्या reply किया ये भी पढ़िए……….
follyofawiseman के द्वाराJune 9, 2012
साधना जी, एक प्रसिद्ध कहावत है……’आसमान से गिरे और खजूर पर अटकें……’ आप पहले से बीमार थी और आपके मित्र ने आपको एक नई बीमारी दे दी…..पहले आपकी बीमारी ये थी की आप खुद को सुखवादी मानती थी….लेकिन अब अपने उससे भी गहरी बीमारी पाल ली है खुद को दुखवादी मानने की……वैसे ‘दुखवादी’(Sadist) उसको कहते है जो दूसरों को दुखी देख कर खुश होता हो….जो खुद को कष्ट पहुँचता है हम उसको masochist कहते है….औरतें आम तौर पर masochist होतीं है….she enjoys torturing herself. She finds ways to torture herself.
एक और बात ये आपने आत्मा से साक्षात्कार किया कैसे……? ये बात तो ऐसे हो गई जैसे, कुत्ते ने ख़ुद से ख़ुद की puchh पकड़ ली हो……? अगर आपने आत्मा से साक्षात्कार किया तो फिर आप कौन हैं…..
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sadhna srivastava के द्वाराJune 9, 2012
संदीप जी आपके लेख और कमेंट्स पढ़ कर लगता है आप बुद्ध हो चुके हैं….. जिसने औरतों पर काफी शोध किया है….. और हाँ कुतों पर भी….. या ये कहूँ की हर किसी पर…. हर बीमारी…. हर प्राणी…. हर विचारधारा…. हर एक चीज़ पर आपका पूर्ण आधिपत्य लगता है…..!!
आपकी कहावत तो एकदम सही है लेकिन यहाँ फिट नहीं बैठ रही…..!! बहुत अच्छा किया दुःख वादी शब्द का मतलब बता कर…. क्योंकि जिसने मुझे दुःख वादी कहा है उनके महानुभाव के अन्दर ऐसी आदतें हैं…..
मैं आत्मसाक्षात्कार के पहले और बाद में … हमेशा ‘साधना’ ही रहूंगी……
(और इस सब के ठीक बाद मेरे उपरोक्त पोस्ट पर इनहोने क्या कमेंट किया ये भी पढ़ लीजिए…..)
sadhna srivastava के द्वारा June 9, 2012
बस इतना ही काम रह गया है क्या……
(और यहाँ आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ये वही साधना जी हैं….जो अभी कुछ दिन पहले मेरी तारीफ मे मेरे हर एक लेख पर दस-दस कमेंट करती थीं……और आज देखिए……मैंने जरा सा चोट क्या की……. इनकी बुनियाद ही हिल गई…….और अगर एक दो और चोट मैंने ढंग से कर दिया तो आश्चर्य नहीं होगा अगर ये भी मेरे विरोध मे कोई आंदोलन शुरू कर दें तो…….ये है हमारे मन का हाल हैं……साधना जी का ही नहीं हम सब का यही हाल…है……’पल में मासा पल में तोला’)
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ये सब पढ़ कर अगर आपके अंदर साधना जी की तरह अगर जरा भी आत्म-साक्षात्कार करने की क्षमता है तो आप समझ ही गाए होंगे की आप और आपके इस जागरण मंच की महान लेखिका आत्म-साक्षात्कार करने मे कितने सक्षम हैं………
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