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“तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा”-2

Wise Man's Folly!
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ऋषि कहता है, “ईशावास्यमिदं सर्वं”…… “हर चीज में ईश्वर का वास है”…. ईशावास्योपनिषद के इस छोटे से महामंत्र मे जीवन के अनेक गूढ़ रहस्य छुपे हुएँ है,…… हर शब्द अपने मे महासागर की गहराई को समेटे हुआ है………हमे एक-एक शब्द पर ठहर कर ध्यान करना होगा…..क्योंकि बाहर से ये बातें भले ही हमे समान्य और सुलझी हुई प्रतीत होतीं हों पर भीतर उतरने पर ये बातें हमारी उम्मीद से कहीं जियादा सूक्ष्म और जटिल हैं…..ये जीवन के गहरे रहस्यों मे से एक है कि ‘जो बातें ऊपर से सरल और साफ प्रतीत होती हैं, गहरे उतरने पर वो उतनी ही सूक्ष्म और रहस्यपूर्ण होती हैं’….
चूंकि ईशावास्योपनिषद के इस वचन को हमने हजारो बार सुना और पढ़ा हैं… हमे ऐसा लगता है कि इसमे कुछ खास है ही नहीं, ये तो जगतविदित बात है …..हम रोज़ तो दोहराते हैं इन बातों को…..लेकिन दोहराने से अगर सच को जाना जा सकता, तो हर कोई जो गीता दोहरा रहा है कृष्ण हो जाता…..
मैंने बहुत पहले एक झेन मज़ाक पढ़ा था, एक पिता अपने मित्र से अपने धार्मिक पुत्र की बड़ाई करते हुए, मित्र के सामने अपने बेटे से पुछता है, “भगवान कहाँ रहतें है” तो बेटा कहता है, “हमरे हृदय में” और बाप खुश हो कर अपने मित्र से कहता है “देखो मेरा बेटा कितना धार्मिक है, मैं अभी से इसे धर्म की शिक्षा दे रहा हूँ”, तभी वो आदमी उस लड़के से पुछता है, ‘‘और बेटा ये बताओ कि हृदय कहाँ हैं’’ ये प्रश्न सुन के लड़का मुँह खोल कर अपने बाप की ओर देखने लगता है…….
उस बच्चे और उसकी बाप की वेवकूफी पर हँसना मत क्योंकि हमारी स्थिति उस बच्चे से अलग नहीं है…..ये कहानी किसी एक बाप और उसके बच्चे की नहीं है….ये हम सब की कहानी है…..हम सब के बाप ने हमारे साथ यही किया है और हम सब अपने बच्चे के साथ भी यही कर रहे है…….!
इसीलिए ये अत्यंत अवश्यक है की हम अपनी अभी तक की अर्जित सभी कूड़ा-कचड़ा ज्ञान और अनर्गर्ल तर्क को किनारे रख दें और पूरी सजगता व होश से भर कर इस महामंत्र मे उतरे…..
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आइए अब हम मंत्र मे उतरते हैं………
पहली बात जोकि मैंने पीछे भी उठाई थी कि ‘ईश्वर’ शब्द से ऋषि का क्या तात्पर्य है…., ‘ईश्वर यानि क्या…’ मुझे नहीं पता कि आपने इस पर कितना चिंतन किया….कोई 403 बार लोगों ने लेख को visit किया वो भी तब जब जागरण ने लेख को फीचर्ड नहीं किया…..लेकिन आश्चर्य की बात है… किसी ने भी कोई संगत कमेंट नहीं किया….., जिससे ये साफ़ स्पष्ट होता है कि हमारे देश के बुद्धिजीवियों के पास चिंतन करने की कोई क्षमता नहीं है।
एक और चीज जो सोचने जैसी है वो ये कि आख़िर ऋषि को ऐसा कहने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है कि “हर चीज में ईश्वर का वास है” क्योंकि ऋषि ने जब ये बात कही होगी तब ये बात बिल्कुल नई होगी….……….. इसीलिए मैं समझता हूँ कि हमे इस पर विचार करना होगा कि , ‘ऋषि कह किस्से रहा है ये सब…… कौन लोग थे वे और उनकी मान्यताएँ क्या थी……और ऋषि का ऐसा कहना कि “हर चीज में ईश्वर का वास है” का उदेश्य क्या रहा होगा….’ क्योंकि कोई भी बात किसी संदर्भ मे महत्वपूर्ण होती है, बिना सही संदर्भ के किसी भी बात का कोई मूल्य नहीं होता है…….और यदि ऋषि इस उद्घोष का प्रयोग साधन की भाँति कर रहें हैं, तो फिर इसका साध्य क्या है…? ये कहाँ पहुँचा सकता है हमे………..क्योकि किसी भी साधन का महत्व उसकी साध्य पर निर्भर करता है….इसीलिए हमे समझना होगा कि ‘किस साध्य के निहित ऋषि इस साधन का उपयोग कर रहा है’…..
(इससे पहले कि प्रश्न मे गहरे उतरे….हम अभी जहाँ खड़े हैं थोड़ी वहाँ के बारे मे समझ लेते हैं…..क्योंकि यात्रा वहीं से शुरू होगी जहाँ हम खड़े हैं….)
अब यहाँ सब से बड़ी दिक्कत ये है कि हम सब अपनी बीमारी को स्वास्थ मान कर बैठे हुएँ है, इसीलिए जब तक हम ये न जान लें कि हम बीमार है इलाज़ संभव नहीं है….इसीलिए पहले तो हम ये समझने कि कोशिश करतें हैं कि ‘कैसे’ और ‘क्यों’ हम बीमार है…………1) हमारी पहली बीमारी है मान्यता(Faith)-जीवन की जितनी ऊँची-ऊँची बातें हैं वो सब हमे पता है……इसीलिए यहाँ कोई ये प्रश्न ही नहीं उठता कि ‘ईश्वर क्या है…’ हमारा प्रश्न होता है “क्या आप ईश्वर मे भरोसा करतें है….Do you believe in God” अब ये प्रश्न बुनियादी रूप से गलत है…..और इसके गलत होने के कई कारण हैं…….चूंकि हम इसे सदियों से पुछते आएँ है इसीलिए हमे इसमे कोई गलती नहीं दिखती है…..हमे इस प्रश्न मे कोई कमी नहीं दिखती है…..और चूँकि ये प्रश्न अपने मूल मे ही गलत है इसीलिए मैंने अपने पिछले आलेख में इस प्रश्न का जवाब देने वाले को तथाकथित आस्तिक और तथाकथित नास्तिक कहा था…..क्योंकि हमारे आस्तिक और नास्तिक दो ऐसे अंधे है जिनमे से एक ये मानता है कि प्रकाश है और दूसरा मानता है कि प्रकाश नहीं है…..और अनर्गल तर्क से अपनी अपनी बातें सवित कर देता है …..लेकिन सोचने वाली बात ये है कि सिर्फ प्रकाश को मान लेने या ना मान लेने भर से उन अंधों के जीवन मे कोई रूपांतरण घटित होगा…….नहीं होगा, आज तक तो ऐसा नहीं हुआ है….अंधेपन से छुटकारा पाने के लिए चिकित्सा की पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा, प्रकाश को मान भर लेने से कुछ नहीं होगा, …..! (इसीलिए EINSTEIN अपने तर्को के साथ उतना ही अंधा है जितना कि वो Professor …..!)
क्रमशः
(Note- कृपया कुछ भी कमेंट करने से पहले उपरोक्त बातों पर अच्छे से चिंतन कर लें….and please don’t comment just for the heck of it..)

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