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ईशावास्योपनिषद का ऋषि कहता है, “ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्. तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विध्दनम्.” इस महामंत्र के चार टुकड़े हैं, और हर एक टुकड़ा समझने जैसा है, एक-एक शब्द कोहिनूर से भी जियादा बहुमूल्य है…प्रतेक टुकड़ा एक महाकाव्य है, ऋचा है..
अगर हम इस मंत्र को आत्मसात कर लें तो हम भी परम भोग मे भागीदार हो सकतें है…..इसीलिए आइए होशपूर्वक एक-एक वचन को पूरा-पूरा पीने की कोशिश करतें है…..
सबसे पहले ऋषि कहता है…. “हर चीज में ईश्वर का वास है, प्रकृति ईश्वरमय है….लेकिन प्रश्न ये उठता है कि… ‘ईश्वर यानि क्या’….. ‘ऋषि ईश्वर कह किसे रहा है’……और ऋषि का ऐसा कहना कि “हर चीज में ईश्वर का वास है” का तात्पर्य क्या है….‘किस तरफ इशारा किया जा रहा है’…., ऋषि हमे दिखाना क्या चाहता है ….और इस सब से भी जियादा महत्वपूर्ण बात ये कि ‘क्या हम वही देख रहें है जो ऋषि हमे दिखना चाह रहा है या फिर हम वो देख रहें है जो हम वस्तुतः देख सकते है….जिसे देखने की हमारी क्षमता है’……..
हम मे से कुछ लोग तथाकथित आस्तिक है और कुछ तथाकथित नास्तिक…., आस्तिक मान के बैठा है की ईश्वर है…..वो ईशावास्योपनिषद के ऋषि की बात को दोहरता रहता है… “हर चीज में ईश्वर का वास है, प्रकृति ईश्वरमय है” वैगरह-2 …..इसके विपरीत जो लोग नास्तिक है उनकी अपनी तान है….वो अलापते रहतें हैं…. “कहीं कोई ईश्वर नहीं….” उधर जर्मनी मे नित्शे कहता है, “God is dead”…….. जीतने लोग उनती बकवासें और और उनकी बकवासों को सार्थक सवित करती उनकी दुनियाँ भर की सड़ी-गली तर्क……..!
इन सब मे जो एक बात समान्य है….वो ये कि इन सब ने कुछ न कुछ मान लिया है…..ये लोग पहले एक झूठ को मान लेते है और फिर उस झूठ को आधार बना कर…बकवास करने लगते है….
लेकिन मेरा ये कहना है की किसी भी मान्यता को अपनाने से पहले हमे ये जानना होगा कि ‘ईश्वर आखिर क्या…????’ ये तो बाद की बात है की ईश्वर है या नहीं है….पर पहले ये तो साफ हो जाए कि ‘ईश्वर से हम समझते क्या हैं’……???
क्रमशः
(Note- कृपया कुछ भी कमेंट करने से पहले उपरोक्त बातों पर अच्छे से चिंतन कर लें….and please don’t comment just for the heck of it..)
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