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दोस्तों कल शाम खुरखुर भाई के दालन पर श्रीमान लख्खा प्रसाद, सितीया जी और Pakiya भाई मे जम कर बहस बाजी हुई, बहस का मुद्दा था ‘यह जीवन क्या है ?’….संयोगवश मैं मौका-ए-वारदात पर मौजूद था… और मुझे बड़ा आनंद आया इन तीनो महान आत्माओं की बकवास सुनकर…..इसीलिए मैंने सोचा ये ज्ञान की बातें आप से भी बाँटी जाए…..हो सकता है बुधनाथ की तरह आपकी भी ज्ञान-चक्षु खुल जाए इन तीन नमूनो की ऊँची ऊँची बातें सुन कर, कसम ख़ुदा की क्या लंबी-लंबी फेकते हैं ये लोग !..!
तो लीजिए आप सबके बीच पेश कर रहा हूँ श्रीमान लख्खा प्रसाद, सितीया जी और Pakiya भाई के बीच हुई सरफोरौअल बात-चित का ख़ास हिस्सा…..!
Thus Spake श्रीमान लख्खा प्रसाद उर्फ लखना :
“दादा-ए-सुख़न मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब ने गाया है “न था कुछ तो खुदा था न होता कुछ तो खुदा होता , डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता” ……..जिस सिम्त भी देखता हूँ मुसीबत ही मुसीबत है,…… ससुरा महंगाई अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा हुआ है…… इस देश की आधी से जियादा आबादी की रोज़ की औसत आय महज पचीस रूपये से भी कम है……..लाखो लोग दुनियां में भूखे मर रहें हैं……लूट, मार, दंगे, फसाद, बलात्कार, अपहरण, के किस्से अखबार के स्थाई अंक बन चुके हैं…..भ्रष्टाचार आम जिन्दगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है….बच्चे माँ-बाप की इज्ज़त नहीं करते है….घर के बुजुर्ग वृधाश्रम में पल रहे है…चंद सिक्को के लिए लोग अपनी आबरू नीलाम कर रहे हैं…….हर जगह विसंगति है, कहीं लोग भौतिक सुख के महासागर में गोते लगा रहे है तो कही लोग चुल्लू भर पानी के लिए तरस रहे है …महानगर की हवा इतनी विषाक्त हो चुकी है की लोग हज़ार प्रकार की प्राण-घातक बिमारिओं से रोज़ ग्रसित हो रहे है…लोगो के पागलपन का ये आलम है कि रात ठीक से नींद नहीं आती है, लाखो लोग नींद की गोली ले के सोते है… धर्म के नाम पे सिवाय पाखण्ड के कुछ भी बांकी नहीं रह गया है, कोई हरी बोल रहा है तो कोई बोल हरी…हज़ार कांटो के बीच एक गुलाब खिलता है…दो लम्बी रातो के बीच इक मुख्तसर दिन का आगमन होता है….लोग समय से पहले बूढ़े होते जा रहे है…..ओजोन परत में छेद बढ़ता जा रहा है….कहीं लोग सूखा से मर रहे है तो कहीं बाढ़ से…चारोतरफ अराजकता फैली है….हर कोई अपनी जिन्दगी से नाशाद है….मुझे तो हर कोई पागल लगता है यहाँ, कोई कम तो कोई जियादा, ऐसा लग रहा है जैसे हम किसी बड़े पागलखाने में रह रहे हो, ….जीना मुहाल हो गया है…बेरोजगारी विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है…यार Pakiya जी करता है आत्महत्या कर लूँ….”अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे … मर गये पर न लगा जी तो किधर जायेंगे””
(वहाँ मौजूद सभी लोग लखना की बातों को सुन कर गंभीर हो गए थे….कुछ लोग लखना की बात सुन हाँ मे सर भी हिला रहे थे…..)
अब इस गंभीर माहौल को हल्का करते हुए सितीया जी ने क्या कहा ये भी सुनिए….
(सितीया जी, चेहरे पर मुस्कान लाते हुए….अपनी बात रखते हैं )
“कितनी ख़ूबसूरत है ये जिंदगी…..क्या कुछ नहीं है यहाँ………, हज़ार कांटो के बीच मुसकुराता हुआ गुलाब…….कीचड़ से उद्गम होता कमल….”हर आन यहाँ सेहबा-ए-कुहन एक साघर-ए-नौ में ढलती है……कलियों से हुस्न टपकता है, फूलों से जवानी उबलती है”, कितनी अनोखी दुनियाँ है यह, ‘I want to be born here again and again’. ..
मनुष्य आज सम्पन्नता के उस शिखर पर खड़ा है जहाँ वह पहले कभी नहीं पहुंचा था…इतिहास में आदमी आदमी का गुलाम हुआ करता था पर आज मशीन मनुष्य का गुलाम है… हर कोइ अपनी जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है…वह सब कुछ जो फकत खुल्द और ख्यालो में हुआ करता था वो सब आज ज़मीन पर मयस्सर है…वो तमाम प्राकृतिक आपदाए जिनसे लड़ना कलतक मुमकिन नहीं था, आज हम उनसे जूझने के काबिल है…रोज़-रोज़ हमारी चेतना प्रौढ़ होती जा रही है…आज औरते खुली हवा में सांस ले सकती है…..बच्चे अपनी बात बड़ो के सामने रख सकते है…आज हम घर बैठे पूरी दुनिया से जुड़ सकते है….कुछ समस्याएँ है जिन्हें हमने अपनी इस विकास यात्रा में पैदा किया है पर उनसे हम खुद निपट सकते है आज हम किसी ताक़त-ए-गैब के मोहताज नहीं है अगर विज्ञानं ने चंद नई समस्याओं को जन्म दिया है तो वो उन समस्याओं से निपटने में भी सक्षम है……हमरे पास पर्याप्त साधन है…हम जब चाहें जनसँख्या पर लगाम लगा सकते है…अगर कहीं कुछ बाधा बन रही है तो वो है हमारा बिता हुआ कल, हमें कल में झाँकने की नहीं कल से मुक्त होने की जरूरत है हमें पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हो जाने की जरूरत है….इकबाल ने गाया है “कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी” अगर नहीं मिटती है तो इसे मिटा देने की जरूरत है…..विज्ञान से उत्त्पन्न जितनी भी समस्या है उसका इलाज़ विज्ञान ही है….मैं तो यही कहूँगा….”याँ हुस्न की बर्क चमकती है, याँ नूर की बारिश होती है,
हर आह यहाँ एक नग्मा है, हर अश्क यहाँ एक मोती है हर शाम है शाम-ए-मिस्र यहाँ, हर शब है शब-ए-शीराज़ यहाँ है सारे जहाँ का सोज़ यहाँ और सारे जहाँ का साज़ यहाँ”
इन दोनों को देर तक गौर से सुनने के बाद Pakiya जी ने क्या कहा ये भी सुनिए…….
‘श्रीमद भगवदगीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है की ‘समस्या शाश्वत’ है और ठीक ही कहा है, हम एक से निजात पाते नहीं है की दो नई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है…हम सदियों से कोल्हू की बेल की तरह गोल-गोल घूम रहे है…सदियों से इस भ्रम में जीते आ रहें हैं कि इस सदी के बाद एक बेहतर सदी आएगी, हर सुबह हमारे लिए morning की बजाए एक more-inning होती है……मेरे भाई, यहाँ सिर्फ समस्याओं का रूप बदल जाता है उनके गुण-धर्म में रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता है …ठीक ही कहा है शेक्श्पीअर ने “ये जिन्दगी कुछ भी नहीं, सिवाय मुर्ख के द्वारा कही गयी इक कहानी के, जिसमें शोर-शराबा तो बहुत है पर महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं”…….”ऊब सुबह की घुटन दोपहर और उदासी शाम की कई दिनो से यही दशा है क्या मर्ज़ी है राम की……”
(‘दोस्तों Pakiya को तो नहीं पता की राम की मर्ज़ी क्या है लेकिन अगर आपको पता हो की राम की मर्ज़ी क्या है, फिर ‘जीवन क्या है’ तो आप अपनी विचार हम तक कमेंट के जरिए पहुँचा सकते है मैं आपकी बातों को Pakiya भाई, सितीया और श्रीमान लख्खा प्रसाद तक पहुँचा दूंगा…..)
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