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सेक्स साधू और समाज………

Wise Man's Folly!
Wise Man's Folly!
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किसी ऐसे मस्त साधू को जानते हो जिसकी साधुता जीवंत हो, मनमोहक हो, एक ऐसी साधुता जो उदास न हो, हँसता- मुस्कुराता हो, दूर-दूर तक जिसके व्यक्तित्व में गंभीरता का कहीं कोई नामोनिशान न हो, एक ऐसा साधू जो जीवन से जुड़ी सब बातों मे उत्सुक हो…..जो ख़ुद धन कमाता हो, फिल्म देखता हो…शराब पीता हो…., लड़कियों को लाइन मारता हो,…..और सेक्स को लेकर भी उतान ही उत्सुक हो जीतना की समाधि को लेकर……, एक ऐसा कमाल का संत जो ‘अनार कली डिस्को चली’ की धुन पर नाच भी नाच सकता हो और बुद्ध की तरह बूत बन कर शांत भी बैठ सकता हो……., कहने का मतलब ये है कि ऐसा संत ……जिसका जीवन एक आर्केस्ट्रा कि भांति हो………सब तरह के संगीतों का स्वर एक साथ गूँजता हो…., इन्द्रधनुषी हो जिसका जीवन……., सब रंग हो जिसके जीवन में… क्या जानते हो किसी ऐसे संत को……?????????? नहीं जानते हो ना……..!, जानता था ……….जानना तो दूर हमारे लिए ऐसा सोचना भी दूरभ है…….. ! हम तो सिर्फ उन्ही नौटंकीबाज भगोड़ों और लफंगों को साधू समझते हैं जो खुद को त्यागी और सेक्स से परे बताता है और लोगों को जीवन के सौन्दर्य से दूर रहने की उपदेश देता है…….. ! जो सेक्स से दूर रहने की शिक्षा देता है, जिसका परमात्मा दुखवादी है, वह उन्ही पर अपना आशीष बरसाता है जो नाना-प्रकार के उपाय कर खुद को सतातें हैं……….. ! जिसका परमात्मा दुखी और उदास लोगों का परमात्मा है ! जो ख़ुद तो कुरूपता में जीता ही है दूसरों को भी उकसाता है अपने जैसा रस-विहीन जीवन जीने को……मुझे तो इस तरह के लोग यमराज के एजेंट लगतें है…… angry_mob
कितने हैरानी की बात है…..कि आज भी हमारे इस तथाकथित शिक्षित समाज में सेक्स को पाप समझा जाता है…..लोग सेक्स मे ऐसे उतरते है मानो कोई कुकर्म कर रहें हो….खास कर के स्त्रियों के मन मे तो ऐसा भाव सदा ही बना रहता……और यही कारण है आज भी करीब 70% महिलाएँ अपने पूरे जीवन काल मे कभी भी orgasm का अनुभव नहीं कर पाती है……हमारे यहं सेक्स से जुडी बोतों को निन्दित समझा जाता है……! अभी कुछ दिन पहले एक बाबा मुझे बता रहे थे कि…’नारी नरक का द्वार होती है……, सेक्स पाप है’, ब्रम्हचर्य ही जीवन है’ और न जाने दुनियां भर की कैसी-कैसी बकवास ! …..
जहाँ सेक्स और प्रेम को ले कर ऐसा गंभीर माहौल हो, वहां किसी ऐसे साधू के होने कि परिकल्पना करना जो जीवन के सर्वांगीण विकास की बात करता हो हमारे बूते से बाहर की बात है, ऐसे लोगों को साधू मानना तो दूर की बात है, हम तो ऐसे लोगो को पागल घोषित कर देश से बाहर कर देंगे…… हमारी जीवन विरोधी शिक्षा-दीक्षा और संस्कार हमें इसकी इज़ाज़त नहीं देती है, हमारे लिए तो साधुता, दमन का पर्यावाची शब्द है….(मैं ने भी इन साधुओं के चक्कर में आ कर अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष संयम साधने में बर्बाद किया है…….)
स्वभावतः मैं ने भी कभी अपने सपनों में भी नहीं सोचा था की कहीं कोई ऐसा साधू भी है जो जीवन को यथावत स्वीकार करता है, जिसकी उत्सुकता सेक्स में भी है, और समाधि में भी, जो ध्यानी भी है और धनी भी, जो व्यापक अर्थों में परमभोगवादी है……जो टंच लाइफ जीता है…. ! जो लोगो को उपदेश दे कर पकाता नहीं है…..जो लोगो को ज्ञान दे दे कर उबता नहीं है…..जिसके होने का ढंग ही उपदेश है, जिसका पूरा जीवन एक देशना है…..
ये सब तो ठीक, पर जिसकी गर्लफ्रेंड भी है…..वो भी एक नहीं कई….(मुझे से भी जियादा, ऊँ….हूं.उं…उं )…….. ! किसी ऐसे साधू की परिकल्पना…..ना-बाबा ना ऐसा तो मैं ने कभी नहीं सोचा था……… ! किसी ख्यातिलब्ध साधू का सेक्स में ही उत्सुक होने कि बात मेरे लिए नई थी, मेरे लिए ये बहुत ही कौतुहल पैदा करने वाली बात थी, ये बात मेरे गले से नीचे उतर ही नहीं रही थी कि कहीं एक ऐसा भी साधू है जिसकी ढेर सारी गर्लफ्रेंड है….बाप रे बा ..इ कईसा संत है……

लोगों के मुंह से सुना था कि फलां साधू पाखंडी है, स्त्रिगामी है वगैरह-वगैरह ! पर ऐसे किसी महिमावान पुरुष से नहीं मिला था जिसके भीतर धरती आकाश का स्वयंवर करती हो, जहाँ न तो कुछ पाप हो और न ही पुन्य, जो दोनों के पार हो…….. ! जिसका बरह्मचर्य इतना खतरनाक हो की सेक्स से भी खंडित नहीं होता हो……., जिसके लिए जीवन महोत्सव सरीखा हो……, जिसके उठने बैठने में एक लयबद्धता हो एक संगीत हो, जिसके चलने में नाच हो, जिसके कंठ से उपनिषद फूटता हो……., जिसे खुद को साधू सावित करने के लिए किसी वाह्य आवरण की जरूरत न हो, जिसका का होना मात्र ही इतना गरिमापूर्ण हो की उसे अगल से दाढ़ी बढाने और चोला लटकाने की जरूरत नहीं पड़ती हो…….(पता नहीं ये साधू संत लोग जंगली की तरह दाढ़ी क्यों रख लेते हैं…….)
मेरे लिए ये सब विचार विदेशी थे किसी और लोक से आये हुए, मेरे मानस-पटल इनका उठाना असंभव था, और शायद में अपने वाइलडेस्ट ड्रीम में भी ये सब कभी सोच भी नहीं पाता…………, अगर नहीं मिला होता वैभव नगर के उस अलमस्त सेक्सी फ़कीर से……., माना कि किसी साधू को सेक्सी कहना हमारे तथाकथित नैतिकता के अनुकूल नहीं है, पर मेरी भी अपनी मजबूरी है, वो आदमी था ही इतना बेजोड़,……….. एक कशिश थी उसके व्यक्तित्व में…….., मैं ने इससे जियादा महिमावान पुरुष पहले कभी नहीं देखा था……what a sexy man !…… उसे सेक्सी न कहें तो और क्या कहे, मेरे शब्कोश में इससे जियादा सटीक शब्द नहीं है…….. वो सबसे अनोखा था, अलहदा था उसका हर अंदाज़, उसके आस पास के हवाओ में जादू थी, एक मदहोशी थी, जो भी उससे मिलता था उसी का हो जाता था ! उसकी मौजूदगी इतनी करिश्माई थी की आस-पास के निर्जीव वस्तुओं को भी चलायमान कर दे…एक अर्थो में बिलकुल मुझ जैसा था वो, वही पहनावा-ओढावा, न तो चेहरे पर लम्बी दाढ़ी थी, और न ही तन पर चोंगा, फिर भी उसमें कुछ ऐसा था, जो इस लोक का नहीं था, उसके सान्निध्य में होना उपनिषद के ज़माने के मनीषियों के समीप होने से कम आल्हादपूर्ण नहीं था…….
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वैभव नगर में एक छोटी सी पान की दूकान है उसकी, भोर से सांझ तक उसी दूकान पर बैठा पान चबाता रहता है और लोगो को भी खिलाता है, किसी भी चीज़ से परहेज नहीं है उसे, रोज़ रात शराब पीता है……लखना के साथ कभी कभी ताड़ी भी पीता है……, दिन में पैकटों सिगरेट धुकता है…… ‘तुम्हारी गर्लफ्रेंड भी है ?’…मैं ने ख़ुशी से उतेजित होते हुए उससे पूछा, …..मेरे होंठ काप रहे थे….., “बहुतों लड़कियों के साथ मैं फ्रेंडली हूँ” बोलते वक्त चेहरे पर कुछ हलचल जरूर हुई पर फिर भी उसमें कुछ ऐसा था जो बिलकुल शांत था….. मैं शब्द नहीं जोड़ पा रहा था, मैं घर से सोच के गया था कि ये पूछूँगा तो, वो पूछूँगा, पर उसके सामने बेवाक था….. मैं अपने जिज्ञाशाओं के अन्धकार को उसके महासूर्य के सामने लाने में अक्षम था……, मेरे सारे प्रश्न भाप बन शून्य में लीन हो गए थे…. मेरा तार्किक मन मर चूका था….., मेरे भीतर तर्क करने के लिए कोई मौजूद ही नहीं था……, एक बात मैं समझ चुका था, अँधेरा चाहे कितनी ही सदियों पुरानी क्यों न हो, पर प्रकाश के सामने एक क्षण को भी नहीं टिक सकती है. मेरे अन्दर के सारे उहापोह शांत हो चुके थे, मैं प्रेम कि रहस्यमयी दुनियां में प्रवेश पा चुका था….. मेरा सारा अतीत खो चुका था, मेरे वर्षों की अथक मेहनत के बाद संचित कि हुई उधार ज्ञान आँसूं बन बह रहे थे……
मैं जब घर आ कर अपने पिता जी को बताया कि वो पान की दूकान पर बैठता है तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ, मैं ने उनसे कहा की जब जनक महलों में रहकर राज-काज चलते हुए विदेह हो सकतें है, वेश्याओं का नृत्य का रस्वादन कर सकतें है और फिर भी उनकी साधुता बरकारा रह सकतीं है तो फिर बैभव नगर का वो युवक भगवान् क्यूँ नहीं हो सकता है…… किसी को भी मेरी बातों पर यकीन नहीं आता है…जब मैं लोगों को उसके बारे में बताता हूँ तो लोग मेरा मखौल उडातें है….कारण सिर्फ इतना है कि मेरा भगवान् दस हजार हाथों वाला नहीं है, न ही मदारी की तरह तमाशा दिखाता है, न तो मेरा भगवान् सर्वशक्तिमान है और न ही सर्वज्ञ और सर्वव्यापी है, ……वो तो सभी प्रकार के चमत्कार व बकवास से रहित सीधा, सरल और साधारण है और यही कारण है कि मेरा भगवान् कभी पाखंडी नहीं हो सकता है…..वो जैसा भी है बस है…. मैंने उसको पूजने के लिए कोई शर्त नहीं रखी है, मेरा भगवान् मेरी कुंठित और विक्षिप्त वासनाओं का प्रक्षेपण नहीं है…… मेरा भगवान् पालनहार और सृजन करता नहीं है, इसीलिए मुझे उस पर निर्भर रह कर अकर्मण्यता में जीवन बिताने कि जरूरत नहीं है………”ख़ुदा न सही आदमी का ख़्वाब सही, कोई हसीं नज़ारा तो है नज़र के लिए….”

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