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‘दुम दबा कर भागे दबंग दरोगा जी’

Wise Man's Folly!
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कल सुबह एक दरोगा जी ने मेरे विरोध मैं एक लेख लिखा, लेख का शीर्षक था, ““मेरे लिए- हम सबके लिए भी हो तेरा इश्क सूफियाना” लेकिन शाम को उन्होने उस लेख को हटा दिया…..ऐसा कुछ दिन पहले एक और महानुभाव ने किया था….पहले लिखा फिर मिटा दिया….! मैं यहाँ ये जानना चाहता हूँ कि ये लोग बुखार में लिखतें है या भांग खा कर लिखतें है…….
अब कोई इन दरोगा जी से ही पुछे ज़रा कि ये लेख इनहोने होश मे लिखा था या बेहोशी में…..अगर बेहोशी मे लिखा था तब तो कोई बात नहीं….. क्योंकि नशेड़ी कुछ भी बक सकता है उसकी बात का क्या मोल…… वो कहते है न…. ”कौआ क्या नहीं खा सकता, नशेड़ी क्या नहीं बक सकता” ……लेकिन अगर यह लेख इनहोने होश में लिखा था तो इतनी जल्दी मैदान छोड़ के भाग क्यों गए……बस दो चार विरोध और दुम दबा के भाग निकले………, अरे अभी लड़ना था, लोगों को समझाना था, नक़ली ब्लॉग बनाके के जालसाज़ करनी थी, अपने बड़े-बड़े राष्ट्र स्तर के कवियों को बुलाना था, गुटबंदी करनी थी….,,,,उनसे मदद लेनी चाहिए थी,….वीर पुरुष इतनी जल्दी हिम्मत नहीं हारतें है….ये तो भीरु वाली बात हो गई….
दबंग दरोगा जी…कुछ तो शर्म कीजिए…..इस तरह अगर आप मुँह छिपा के भागने लेगे तो इस मंच की गरिमा का क्या होगा……ऐसे कैसे भाग गए आप…..ये तो बुज़दिलों वाली बात हो गई……मर्द इस तरह से मैदान छोड़ कर नहीं भागते…..! कहाँ गए आपके घूँघट की ओट से कुड़-बुड़-कुड़-बुड़ करने वाले मित्र सब …..बुलाइए उन सब को….ऐसे मौकों पर ही तो दोस्तों की ज़रूरत पड़ती है…..
दरोगा जी के एक मित्र श्रीमान राष्ट्र स्तर के कवि महोदय जी बड़े मजेदार हैं…..आज कल ये कनफुसकी करने में लगे हुएँ है, इनका काम बस कनफुसकी करना है,….ये ख़ुद कभी सामने नहीं आते है, बस अपने दालन पर बैठ कर गीदर भभकी देते रहतें हैं…..ये हमारे जागरण मंच के सबसे पुराने बरगद हैं, इसीलिए ये सब से तुम-ताम करके बात करतें है…..चूंकि ये बुजुर्ग है और अनुभवी भी है इसीलिए ये प्रचार-प्रसार मे जियादा विश्वास रखते है…ख़ुद तो सब को ये अपने ब्लॉग पर बुलाते ही हैं लेकिन इस काम के लिए इनहोने अलग से भी खुछ आदमी लगा रखा है….. सब जगह इनहोने ने अपना जाल-पोल फैला रखा है…..इनकी एक प्रचारक हैं जो सब के कमेंट के नीचे लिखती फिरतीं है….”आज मैं जो कुछ भी लिख पा रही हूँ ये मेरे आदरणीय कनफुसकी वाले” सर की देन है. वो रास्ट्रीय स्तर के कवि है. आप उनका ब्लॉग भी पदिये.” अब इन महाशय को पढ़ कर तो मुझे एक ही बात समझ में आती वो ये कि या तो इस राष्ट्र का कोई स्तर नहीं है या फिर इन महोदय का…..कमाल का स्तर है इस देश का यहाँ हर कोई ख़ुद को अपनी गली का कालीदास समझता है………..!
खैर छोड़िए इन बातों को, दारोगा जी पर आते है,,,,,
‘दारोगा जी, आपकी ये घटना तो ऐसे हो गई जैसे सुबह का भुला कोई बच्चा शाम को घर वापिस आ गया हो’…..’लगता है अभी तक आपका बचपना गया नहीं है’……….चार लोगों ने आपको झाड़ क्या लगाई आपने तो पूरा स्लेट ही पोत दिया……..हद हो गई …..अपने ओहदे का कुछ तो ख़याल कीजिए ‘दबंग दारोगा जी’
आप मंच के सभी लेखकों से अनुरोध है कि कृपया दरोगा जी को कमेंट की लेमन-चूस देना बंद मत कीजिए…अगर आप लोगों ने ऐसा किया तो बेचारे दरोगा जी हेहरु हो जाएँगे……, बच्चों को इस तरह से शताना ठीक नहीं है, मैं नहीं चाहता की कोई यहाँ से डर के भाग जाए या लिखना छोड़ ये दे या फिर लिखे हुए को मिटा दे……मैं किसी की भी हिम्मत कमज़ोर नहीं करना चाहता हूँ….! ‘बाबू आप सब मन लगा के लिखो…..शुरुआत मे सब से गलती होती है…इसमे कोई नई बात नहीं है….’
दरोगा जी जो बीत गई उसको भूल जाइए……और निश्चिंत होकर मेरे विरोध मे लिखिए…..मेरा सहयोग हमेशा आपके साथ है….मैंने आपके पिछले लेख की भी तारीफ की थी…..इस बार भी आपने अच्छा लिखा था….आपको बिल्कुल डिलीट नहीं करना चाहिए…था…..मैं सब को बोल देता हूँ कि कोई अब आपका विरोध नहीं करेगा, मुझे दो लोगों से कभी कोई शिकायत नहीं होती है एक वो लोग जो मेरी तारीफ़ करतें है और दूसरे वो जो आलोचना करतें है…..दिल से कह रहा हूँ मुझे आलोचक बहुत पसंद है…..मेरे अंदर आपके लिए बहुत सम्मान है…..कितना कुछ नहीं करते है आप मेरे लिए…..हर दस दिन पर एक लेख लिखतें है मुझ पर….सोचिए आपके लेख से मेरा कितना प्रचार होता……सब लोग जान गए मुझे एक आपकी वजह से……आपका मुझ पर बड़ा एहसान है…….इसीलिए मैं दिल से कहता हूँ……आपको किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं है, आप ‘दबंग’ हैं ‘दबंग’……इस बात को हमेशा याद रखिए….मुझे लगता है आप भी हनुमान की तरह अपनी शक्ति को भूल जाते है…..कोई बात नहीं मैं हूँ न आपको याद दिलाने के लिए…..दबंग दरोगा जी की जय…दबंग दारोगा जी की जय…..की जय…………. खुल कर मेरा विरोध कीजिए, जो मन मे आए वो बकिए….मन हल्का हो जाएगा आपका ….कुछ भी दबाइए मत….सब बाहर निकाल दीजिए…और लोगों की परवाह तो बिल्कुल मत कीजिए…..बस अपने दिल की सुनिए…..मैं हमेशा आपके साथ हूँ………और ये बात मैं आप से ही नहीं बल्कि मैं मंच के सभी लेखकों से निवेदन करता हूँ की वो मेरा विरोध खुले दिल से करें, बिल्कुल शरम नहीं करने का…..मसाला न मिले तो मुझे बोलने का, मैं दूँगा ….जीतना मसाला चाहिए उतना दूँगा…..मगर कुछ न कुछ मेरे बारे में हमेशा कहते रहने का,. …..विरोध करने लायक नहीं कुछ मिलता हो तो झूठी कहानी बना कर विरोध करने का…मगर विरोध ज़रूर करने का ।……….क्योंकि…..क्योंकि…..क्योंकि………..
“मय से गरज़ निशात है किस रुसियाह को,
बेहूदगी फ़क़त मुझे दिन-रात चाहिए….”
संदीप कुमार (folly जी)

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