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‘जीवन बसंत की बहार हो तुम…..’

Wise Man's Folly!
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न जाने आज मैं कौन सी बात कहने वाला हूँ….., जबान खुश्क है…., आवाज़ रुकी जा रही है……, हृदय तीव्र गति से स्पंदित हो रहा है…, धमनियों मे रक्त की तेज़ प्रवाह साफ महसूस की जा सकती है…, पूरा शरीर आनंद की ज्वर से तप्त है,….. हाथ थर-थर काँप रहे है………!

हाथ ही नहीं हिय भी कपता आज, कैसे पूरण होगा पतिया लेखन का काज……

ये भावों की कैसी कोमल एहसास है जो मेरे अंतस-वीणा के सभी तारों को झंकृत कर रही है….ये शरद की पुर्णिमा सी कैसी प्यास है जिसे बुझाने के लिए नैन घट-घट नीर उलीचे जा रहा है….ये कैसी अदम्य आवेग है जिसे अभिव्यक्त करने के लिए मेरा पूरा अस्तित्व अकुला रहा है, प्राण मचल रहे है …पैर नाचने को बेताब है…कण्ठ गाने के लिए उद्वेलित है… ये कैसी अदृश्य संगीत है जिसकी धुन से मेरा पूरा अंतस गुंजाएमान है…ये कैसी अभूतपूर्व शीतलता है जिसे छुआ जा सकता है…एहसासों का, भावों का ऐसा मूर्त रूप पहले कभी नहीं जाना था…खुशबुओं की सघन आभामंडल से आबद्ध हूँ……..
तुम्हारे यादों की सातत्य के चोट से एक अलौकिक सुवास आविर्भूत होता रहता है हर पल…..मन मस्ती की रस मे सराबोर रहता है……रह-रह कर मस्ती की एक लहर उठती रहती है…….आठों पहर खुमारी छाई रहती है………….नींद मे भी तुम्हारी सुधि बनी रहती है……जब भी आँखे बंद करता हूँ तुम से आछादित हो जाता हूँ……जहाँ भी जाता हूँ ख़ुद को तुम्हारी मौजूदगी से आविष्ट पाता हूँ………
कोयल की कूक मे तुम सुनाई देती हो…….सुबह गुलाब की पंखुड़ी पे टिकी ओस की बूँद मे तुम दिखाई देती हो….जब भी तुम्हें निहारता हूँ हृदय के अंदर एक मुकम्मल सुकून स्पंदित होने लगता है….तुम्हे जब देखता हूँ तो जिंदगी महसूस करता हूँ……
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जब दिल तेरे इंतज़ार मे उदास होता है….जिधर भी देखता हूँ बस देखता रह जाता हूँ……..! पवन का अयाना झोका जब तुम्हें छु के आता है….तो उससे तुम्हारे छुअन का स्वाद पुछता हूँ……रात चाँद-तारों को नामाबर बना कर तुम्हें पैगाम भेजता हूँ……
जब भी भीतर तुम्हें तलाशता हूँ तुमको ख़ुद से पहले पाता हूँ ……हर आती साँस के साथ तुम मेरे अंदर घुल जाती हो…इतनी करीब हो तुम…..करीब से भी करीब हो………..!
मेरी महोब्बत, तुम ही बताओ ….गर ये महोब्बत नहीं तो और क्या है……

‘मेरी जीवन वाटिका मे नाचती
प्रमुदित मोर हो तुम,
मेरे जीवन पतंग की डोर हो तुम,
पुष्कर पे झरित अभि की
अविरल फुहार हो तुम,
मेरे जीवन बसंत की बहार हो तुम…..
निशाकर शोभित अमल आकाश हो तुम,
मेरे जीवन ज्योत की प्रकाश हो तुम….’ – संदीप कुमार.

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